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________________ २९८ ] प्राचीन जैन स्मारक नाम ददिग और माधव रक्खे । ये भ्रमण करते हुए पेरूर स्थान में आए जहां पहाड़ी है व चन्दनके वृक्ष हैं । वहां इन्होंने डेरा किया और एक जिन चैत्यालयको देखा । प्रदक्षिणा दे पूजा की, यहां कारगणके सिंहनंदि आचार्य के दर्शन किये । शिलालेख में आचाकी प्रशंसा में नीचे प्रकार शब्द हैं समस्त विद्यापारावारपारगः, जिनसमयसुधाम्बोधिसम्पूर्णचन्द्रः, उत्तमक्षमादिदशकुशलधर्मरतः, चरित्रभद्र्धनः, विनेयजनानंदः, चतुर्समुद्रमुद्रितयशः प्रकाशः, सकलसावद्यदूरः, क्राणूरगणाम्बरसहश्र किरणः, द्वादशविधतपोनुष्ठाननिष्ठितः, गंगराज्यसमुद्धर्नः, श्री सिंहनंद्याचार्यः - इन दोनों भाइयोंने आचार्यको नमस्कार किया । मुनिमहाराजने दोनोंको विद्या पढ़ाई, उन्होंने मंत्र साधकर पद्मावतीदेवीको प्रगट कराया । देवीने उन्हें षड़का और राज्य दिया । एक समय जब मुनिपति देख रहे थे, माधवने एक पाषाण स्तंभको गिरा दिया, मुनिपतिने उसको नीचे लिखे शब्दों में आशीर्वाद दिया“यदि तुम अपने प्रण में चूकोगे, यदि तुम जिनशासनकी श्रद्धा छोड़ोगे, यदि तुम परस्त्री ग्रहण करोगे, यदि तुम मांस व मद्य खाओगे, यदि तुम नीचोंकी संगति करोंगे, यदि तुम अपनी संपत्ति दान नहीं करोगे, यदि तुम युद्धक्षेत्र से भागोगे, तब तुम्हारा वंश नष्ट हो जायगा । उस समय से कुवलालमें राज्यधानी करके ९६००० देशका राज्य करने लगे । निर्दोष जिनेन्द्रको अपना देव, जिनमतको अपना धर्म मानते हुए ददिग और माधवने पृथ्वीपर राज्य किया । उनके राज्यकी हद्दबंदी थी - उत्तर में मरनदले, पूर्वमें टोंडनाद, पश्चिममें समुद्र और चेरने, दक्षिण में कोंगू । इन्होंने अपने गुरु www
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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