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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [२९१ (१२) नं० १५ सन् ११६४ वहीं । वीर विनय नारसिंह देवने वसतीके लिये दान किया। (१३) नं० १६ सन् १०६० वहीं । सोसेबूरके व्यापारी लोकजीतका स्मारक नागरिकोंने स्थापित किया । (१४) नं० १७ सन् १०६२ वहीं-विनयदित्य पोयसालके गुरु शांतिदेव मुनिने समाधिमरण किया। नागरिकोंने स्मारक स्थापित किया । (१५) नं० १८ सन् १०४ ०के करीब । वही ग्राम हरमकी दोददूदाबेके स्थानपर एक पाषाण । महाराज राजमल गंगवाड़ीके मुनियोंमें प्रसिद्ध थे। उनके गुरु मुनि वज्रपाणि पंडितने सोसवरमें समाधिमरण किया। (१६) नं० २२ सन् ११२९-ग्राम हन्तुरु-ध्वंश जैन मंदिरमें एक पाषाण । विष्णुवर्द्धनके ज्येष्ठ पुत्र कुमार वल्लालदेव जैनकी बड़ी बहन हरियबरसीने, जो जगतप्रसिद्ध गंधविमुक्त सिद्धांतदेवकी शिष्या श्राविका थी, कोदंगी नादमें भलेवाड़ीके हंतियूरमें एक उच्च चैत्यालय बनवाया व उसके शिषरोंमें रत्न जड़वाये व नीर्णोद्धारके लिये भूमि दान की। ता. कोप्पू। (१७) नं० ३ सन् १०९० के करीब । कोप्प ग्राम । इस म्मारकको अपने गुरु मुनि वादीभसिंह अजितसेनकी स्मृतिमें महाराज मार संतारवंशीने स्थापित किया। यह जेन आगमरूपी समद्रकी वृद्धिमें चन्द्रमा समान था। यह मयूरवर्माका पुत्र था। इसकी त्र
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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