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________________ २१०] प्राचीन जैन स्मारक । (६) नं० १६१ सन् ११३७-ऊपरकी वस्तीमें वरामदेके खंभेपर | जब दो समुद्र में वीरगंग होतालदेव राज्य करते थे, मरियने दंडनायकका पुत्र दुकरस था, उसके पुत्र वाचरस और सोवरस दंडनायक थे तब मरियने दंडनायकके भाई भरत दंडनायकने अपनी सर्वसम्पत्ति जैन मंदिर व दानके लिये अर्पण की । मूलसं. दे० ग० पुस्तकगच्छ कुन्द के कुलचंद्र ति देवके शिष्य माघनंदि गुरुके शिष्य गंधविमुक्त मुनि विद्यमान थे। ता. मुद्गेरी। (७) नं. ९ ग्राम अंगदी, जैन वस्तीके पास विनयदित्य होसालके राज्यमें जकियव्वे गत्तीने आर्यिका होते हुए सर्व सम्पत्ति मोसपूरके जैन मंदिरके लिये दी तथा सुराष्ट्रगण के पंडित वज्रपाणिसे दीक्षा ली। (८) नं० १० सन् ११००के करीब । उसी स्थानपर सेठी गंगदली का समाधिमरण, उसके पुत्र चातयने स्मारक खड़ा किया। (२) नं० ११ सन् २.९० ई० ? उसी स्थान पर । दाविल संघ कंद ० पुस्तक गच्छके भ० त्रिकाल मुनिके शिष्य विमल चन्द्र पंडित देवने समाधिमरण किया । (20) नं० १२ मन ११७२ उसी स्थान पर । काम बरसने होन्गोकी वार्ड के लिये दान किया। (११) नं० १३ सन् १८६९ वहीं । पोपलाला चारिक पुत्र मानिकपोपमालाचारीने इसन बन्तीको बनवाया और मुल्लू के श्री गुगसेन पंडदेव मा किया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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