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________________ २८२] प्राचीन जैन स्मारक । कर रहे थे तब हुल्ला दंडाधिप मुख्य मंत्री था। तथा मूलसंघी देशी ग० पुस्तक ग० कुन्द० गुणभद्र सिद्धांतदेवके शिष्य महामंडलाचार्य नयकीर्ति सि० देव थे उनके शिष्य भानुकीर्ति व्रतेन्द्र थे तब बल्लाल राजाने पार्श्वनाथकी पूजाके लिये मेरुहल्ली ग्राम दिया तथा हुल्लाने वीर बल्लाल राजासे ठेक्का ग्राम श्री गोम्मटस्वामीकी पूजा व भोजन दानके लिये दिलवाया। (२७) नं० १४८ सन १०९४ उसी स्थानपर दूसरे पाषाणपर जब त्रिभुवनमल्ल एरयंग पोयसाल गंग मंडलमें राज्य करते थे तब महाराजने कुंद० मूलसंघी चतुर्मुख देवके शिष्य आचार्य गोपानंदीकी भक्ति करके बेलगोलाके कव्वप्पु तीर्थके मंदिरोंको जीर्णोद्धारके लिये राचनहल्ल और बेलगोला १२ भेट किये। (२८) नं० १४९ सन् ११२५ उसी स्थानपर तीसरा पाषाण। वीर विष्णुवर्डनदेवके राज्यमें, विष्णु राजाने श्रीपाल विद्यदेवकी भक्ति करके सल्द ग्राम भेट किया। श्रीपाल मुनिको उपाधियां थींवादीभसिंह, वादि कोलाहल, तार्किक चक्रवर्ती। यह अकलंक मठके रक्षक थे, तीन शल्य रहित थे, इनके वंशके मुनि थे-समन्तभद्र, वादीमसिंह, अकलंकदेव, वक्रग्रीवाचार्य, श्रीनंद्याचार्य, सिंहनंदि आचार्य, विजय शांतिदेव, पुष्पसेन सिद्धांतदेव, शांतिसेनदेव, कुमारसेन सिद्धांतिक, मल्लिषेण मलधारी । (२९) नं० १५० सन् ११८२ ग्राम बुदुट्टी, अमृतेश्वर मंदिरके पाषाणपर । जब दोर समुद्रमें वल्लालदेव राज्य करते थे तब जैनधर्मी विद्वान चंद्रमौली मंत्री भूषण थे । उनकी स्त्री अचलादेवीने जिनके बड़े भाई देशी दण्डनायक थे व गुरु मूलसंघ दे.
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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