SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २८१ मदरास व मैसूर प्रान्त | (२४) नं० १४१ सन् १९९९ - करुगुन्डुग्राम, जैन वस्तीके दाहनी ओर पाषाण जब दोरसमुद्र में नरसिंहदेव राज्य करते थे तब उनका दंडाघिनाथ जैन श्रावक भद्रादित्य काश्यपगोत्री अलन्दापुर में राज्य करता था । इसका बड़ा पुत्र तैलदंडाधिप था, इसका पुत्र चाउन्ड युद्ध व शांतिका मंत्री था । इसकी भार्या देकमव्वे थी, पुत्र माघपरिसन्ना था । भार्या बम्मलदेवी थी । इस देवीका पिता महामंत्री मरियने थे माता जव्वे थी, छोटे चचा भरतदंडनाथ थे । परिसन्ना के पुत्र शांत थे। परिपन्नाके गुरु श्रीवासुपूज्य सिद्धांतदेव थे, यह बड़ा वीर था । इसने अमलसे युद्धकर शत्रुकी सेनाको नष्ट किया तब राजाने निर्गुडनादमें करगुंडग्राम दिया । परिसन्ना के स्वर्गवास होनेपर उसके पुत्र शांतिदंडनायकने एक जिनमंदिर बनवाया और भूमिका दान श्रीवासुपूज्य मुनिके शिष्य मल्लिषेण पंडितके सन्मुख किया । (२९) नं० १६४ सन् ९७० अनुमान - गंदसी ग्रामके उत्तर द्वारपर पाषाण । श्री जिनसेन भट्टारकके शिष्य गुणभद्रदेव थे इनकी शिया आर्यिका कादम्बेकान्ती थी । तब सत्यवाक्य कोंगनी वर्मा धर्म महाराजाधिराज राज्य करते थे, यह आर्यिकाका स्मारक है । चामराय पाटन ता० श्रवणबेलगोला इसी में गर्भित है । उसके शिलालेखोंका वर्णन कर चुके हैं । अन्य स्थलोंके नीचे प्रमाण हैं (२६) नं० १४६ सन् १९०४, ग्राम बेक्का | जैन वस्तीके सामने पाषाणपर । जब समुद्र में प्रताप होयसाल बल्लालदेव राज्य
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy