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________________ २७०] प्राचीन जैन स्मारक । उसी वंशमें समंतभद्र-इसी वंशमें देवनंदी, या जिनेन्द्रबुद्धि या पूज्यपाद (एक हीके तीन नाम) इसी वंशमें अकलंक-इसीमें गोल्लाचार्य पद्मनंदी या कौमारदेव कुलभूषण प्रभाचंद्र कुलचंद्र माघनंदि माघनंदिके शिष्य थे-( १ ) सामंतकेदारनाकरस (२) सामंतनिम्बदेव (३) सामंतकामदेव ( ४ ) गंधर्वविमुक्तदेव (५) भानुयने (६) वृचिमय्या (७) कौरय्या (८) भरत (९) भानुकीर्ति (१०) देवकीर्ति-इनका समाधिमरण सन् ११६३में हुआ (११) हुल्ला (१२) लक्खनंदी (१३) माधव (१४) त्रिभुवनदेव । इनमें कई साधु व कई श्रावक श्राविका हैं। इस लेख में है कि स्वामी पूज्यपाद जैनेन्द्र व्याकरण सवोर्थसिद्धि, समाधिशतक, जैनाभिषेकके कर्ता थे। वे प्रभाचन्द्र न्यायके किसी प्रसिद्ध ग्रन्थके कर्ता थे। माघनंदी कोल्हापुरमें तीर्थस्थापक थे। गंधविमुक्तके शिष्य श्रुतकीर्तिने राघवपांडवीय चरित्र लिखा। (७) नं० ६६ (४२) सन् ११७६ । नं० ११७के समान । मलधारीदेव या श्रीधरदेव । श्रीधरदेवके माघनंदि, इनके शिष्य गुणचंद्र, मेघचंद्र, चंद्रकीर्ति, उदयचंद्र । गुणचंद्रके पुत्र नयकीर्तिकी समाधी सन् ११७६में । इनके साथी माणिक्यनंदि थे। यह भी गुणचंद्रके पुत्र थे।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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