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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [२६९ इस लेखमें (१) वक्रग्रीवके सम्बंधमें लिखा है कि इन्होंने अथ शब्दके अर्थ छः मास तक वर्णन किये । (२) श्रीवर्द्धदेव दंडी कवि द्वारा स्तुत्य था। (३) आचार्य महेश्वरने ७० स्थानों में बड़े बड़े वाद किये तथा अन्य भी बहुतसे वाद जीते । (४) अकलंकस्वामीने बौद्धोंको '१०० वि० सं० में हराया ऐसा संस्कृत अकलंकचरित्रमें है। विक्रमार्कशकाब्दीये शतसमप्रमानुषि । कालेऽकलंकयनिनो बौद्भर्वादो महानभृत ॥ (५) विमलचन्द्र ऐसे विद्वान थे कि उन्होंने सात्रु भयंकरके महलके द्वारपर यह सुचना लगा दी थी वह शव, पाशुपत, बौद्ध और कापिलाससे वाद करनेको तैयार हैं। (६) वादिराजने पार्श्वनाथ चरित्र सन् १०२५ में रचा है, जब चालुक्य महाराज जयसिंह राज्य कर रहे थे। इनके गुरु मतिसागर थे। मतिसागरके गुरु सिंहपुरके श्रीपाल थे। . (५) नं० १४ ० (६०) सन १११५-गंधबरण बस्तीके स्तंभपर । इसमें नं० १२७ के समान मेषचंद्र तक है । इनके शिष्य प्रभाचंद्रकी समाधि सन् ११४५में हुई थी। मेघचंद्रके साथी बालचन्द्रके पुत्र शुभकीर्ति थे व मेघचंद्रके पुत्र बीरनंदी थे। महाराज विष्णुवर्द्धनकी रानी शांतलदेवी प्रभाचन्द्रकी शिष्या श्राविका थी। (६) नं० ४ ० (६४) सन् ११६३-शांतीश्वर वस्तीके स्तंभपर। गौतमस्वामीसे लेकर भद्रबाहु, चंद्रगुप्त । उसी वंशमें पद्मनंदि या कुंदकुंद। उसी वंशमें उमास्वाति या गृहपिच्छ, फिर बलाक पिच्छ
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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