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________________ २६२] प्राचीन जैन स्मारक । नं० ६३ (३९) शांतीश्वर वस्ती गंधबिमुक्त देवके शिष्य देवकीर्तिका समरण सन् ११६३में। हुल्लाने गुरुका स्मारक बनाया।नं०६६ (४२) शांतीश्वर व ० गुणचंद्रके शिप्य नयकीर्तिका स० मरण सन् ११७६में। नं० ६५ (४८) मलधारी रामचंद्रके शिप्य शुभचंद्रका समाधिमरण सन् १३ १३में। शुभचन्द्रके शिष्य पद्मनंदीने स्तुतिकी, माधवचंद्रने स्मारक बनवाया, बेलुकेरीके गुम्मटराजाने स्थापित किया । नं०२६४ (१०५) सिढेरवस्ती। गुरु पंडिताचार्यका स मरण सन् १३९८, उसके शिप्य अभिनव पंडितने स्मारक रक्खा--- नं० २५८ (१०८) सिद्धर बस्ती । सिद्धांत योगीके शिष्य श्रुतमुनिका समाधिमरण सन् १४३२ में। यात्रियोंके लेख । यहां १६० दक्षिण तथा उत्तरके हैं। इनमेंसे ७ वीं से १२वीं शताब्दीके दक्षिणके ५४ लेख हैं। इनमेंसे नीचेके जाननेयोग्य हैं नं० ४०-कविरत्न कन्नड़ कविने कवि चक्रवर्तीका पद चालुक्य राजा तैल तृ०से प्राप्त किया व सन् ९९३में अनितपुराण लिखा। नं. ११७-नागवर्म प्रसिद्ध कन्नड़ कवि जो गंगराजा राक्षस गंगद्वारा सम्मानित था इसने छन्दीम्बुधि और कादम्बरी लिखी। नं० ४५७ वत्स्योंका राजा वालादित्य यात्रार्थ आया । नं० १५७-गंधविमुक्त सिद्धांतदेवका शिष्य श्रीधर श्रावक रईस साहब लिखते हैं-- "The above recards have their own valuc in several other respects, one of them, being their antiquity. They thus bear testirony to the sacredness and importance of the place even in early times; so that eminent Jain Guru, poets, artists, chiefs,
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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