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________________ २५८] प्राचीन जैन स्मारक। / नं० ६७ सन् ११२९ पार्श्वनाथ वस्ती। कहता है कि श्री अकलंकस्वामीने राजा हिमशीतलकी सभामें बोंडोंको परास्त किया तब पांड्य रानाने स्वामीका पद दिया । राजा हिमशीतल कांची में राज्य करता था। शायद यह पल्लव राजा था। _____ नं० १४९ सन् ११५० चंद्रगिरिका हाता व नं० ४५७ सन् १००० ब्रह्मदेवके पर हातेके बाहर कहते हैं कि वत्स्योंके राजा गरुड़ केशिरान और बालादित्य थे। नं० ६४ सन् ११६३ शांतिवस्ती । इसमें गंधविमुक्त देव मुनिके श्रावक शिष्योंके नाम हैं। सामन्त, केदारनाकरस, कामदेव, भरत, वुचिमय्या, कोरव्वा । निम्बा, माघनंदि मुनिका श्रावक शिष्य था इसका वर्णन तेरदालके लेखपर भी आया है । (Indian Ant. XIV 44) तथा पद्मनंदि आचार्य कृत एकत्व सप्तति ग्रन्थमें इसे सामन्तरत्न कहा है । सं० नोट-हमने लिखित प्रतिमें देखा तो किसी श्लोकमें यह नाम नहीं मिला। शायद ताड़पत्रकी प्रतिमें ऐसा हो । पता लगाने की जरूरत है । यह आनन्द शुभचन्द्र के शिष्य थे जिनका समाधिमरण सन् ११२३ में हुआ है । नोट- इस लेखसे पता चलता है कि पद्मनंदि पचीसी ग्रन्थके कर्ता पद्मनंदि १२वीं शताव्दीके आचाय है)। ___ नं० ४०५ सन् १३३३ वीरगल, ईश्वर मंदिरके सामने चादरहल्लीपर । यहांके केतगोविंदका युद्ध मुमलमानों से हुआ था उसमें यह मारा गया। नं० २५४ सन् १३९८ सिद्धर वस्ती। हरियाना और माणिकदेव पंडिताचार्यके प्रावक शिष्य थे।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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