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________________ २५४] प्राचीन जैन स्मारक । ११८१में पार्श्वनाथ वस्ती बनवाई । अचलदेवीके गुरु नयकीर्ति थे, इनके मुख्य शिष्य बालचंद्र मुनि थे व अन्य शिप्य थे भानुकीर्ति, प्रभाचंद्र, माघनंदि, पद्मनंदि और नेमिचंद्र । इम वम्तीके लिये महाराज वल्लाल द्वि०ने ग्राम वनमेरेयनवल्ली भेट किया । नं० ३३५ (१८०) सन् ११७५ नगर जिनालय-कहता है कि नवकीर्तिका श्रावक शिष्य नागदेव था। यह महारानका पट्टन स्वामी था । यह मंत्री वम्मदेव और जगवईका पुत्र था । इसने नगर जिनालय बनवाया । इस लेखमें कहा है कि इस समय वेलगोलाके व्यापारी जो खण्डाली और मूलभद्रके प्रसिद्ध वंशमें थे, सत्य तथा धर्मके भक्त थे तथा समुद्रके बंदरोंसे व्यापार करने में कुशल थे। Devoted to truth and purity and as skillecl in coducting trade with many seaports. इसी नागदेवने अपने गुरु नयकीतिका स्मारक स्थापित किया जिनका समाधिमरण सन् ११७६में हुआ। नं० ३८० शांति वस्ती जिननाथपुर कहता है कि इसको सेनापति विशुद्धैक बांधवने बनवाकर कोल्हापुरकी सावंतवस्तीसे सम्बंधित माघनंदिके शिष्य शुभचंद्र वेधके शिप्य सागरनंदीको सुपुर्द किया। रेचिमया कलचूरी रानाका मंत्री था। पीछे इसने वल्लाल द्वि के नीचे काम किया। नं० १८६ (८१) गोमटस्वामीके हातेकी भीतपर । कहता है कि वल्लाल द्वि०के पुत्र नरसिंह द्वि० या सोमेश्वरके राज्यमें अध्यात्म बालचंद्रके शिप्य पद्म सेठी के पुत्र गोम्मट्ट सेटोने सन् १२३ १ में
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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