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________________ २५२ ] प्राचीन जैन स्मारक | नं० १४२ (५२) यहीं, सन् १९३९ कहता है कि बलदेवके पुत्र सिंगिय्याने यहां समाधिमरण किया । नं ० • २६९ व २६६ सन् १९४५ आसन भुजवलि और भरतकी मूर्ति गोम्मट मंदिरका द्वार। इन दोनों मूर्तियोंको गन्धविमुक्त सिद्धांतदेवके शिष्य सेनापति भरतेश्वरने विष्णुवर्द्धन के राज्य में निर्मापित कराया । इस भरतका वर्णन ६४ (४०) सन १६३ में भी है । इस भरतेश्वरने ८० जिन मंदिर बनवाये व गंगवाड़ी में २०० जिन मंदिरोंका जीर्णोद्धार कराया । नं० १९९ (६८) सन् ११३० राज्य विष्णु० चंद्रगिरिके हाके बाहर | कहता है कि महाराज त्रिभुवनमल्लने अय्यवले (ऐहोल जि० वीजापुर) निवासी धम्मिसेठी के पुत्र मल्लिसेठीको चलदंकराव होसालसेठीकी उपाधि प्रदान की । जीवनचरित्र धर्मात्मा श्रावक हुल्लाभंडारी । नं० ३४९ (१३८) भंडारवस्ती कहता है कि महाराज नरसिंह प्रथमके मंत्री और भंडारी हुल्लाने सन् १९९९में चतुर्विंशति जिन वस्ती या गंगेरवस्ती बनवाई। यह हुल्ला बाजी वंशमें हुआ । यह जक्की राजा और लूकम्बिकाका पुत्र था । इसके छोटे भाई लक्ष्मण और अमर थे | यह जैन मुनि मलधारी स्वामीका शिष्य था । महाराज नरसिंह प्रथम बेलगोला आए और गोम्मटस्वामीकी यात्रा करके इस भंडारवस्तीको भव्यचूड़ामणि वस्ती नाम दिया । हुल्ला सम्यक्त चूडामणि उपाधिधारी था । हुल्लाने सावनेरुग्राम पूजार्थ दान किया । हुला बड़ा राजनीतिज्ञ था । यह बृहस्पतिसे भी बढ़कर था । Hulla was a great politician superior to Bruhaspati.
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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