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________________ २३०] प्राचीन जैन स्मारक । नोट-यहां पासमें कालम्मावस्ती या काली देवीका मंदिर है। जैन मठसे प्रतिदिन चावल भेजे जाते हैं। (१) नगरजिनालय-इसमें कायोत्सर्ग श्री आदिनाथ २॥ फुट ऊंचे। यहां लेख नं० ३३५ (१३०) कहता है कि इस मंदिरको होयसाल राजा वल्लाल द्वि० (११७३-१२२०) के मंत्री नागदेवने बनवाया जो नयकीर्ति सि० च०का श्रावक शिष्य था । इसने कई धर्मके काम किये थे। इसने कमठ पार्श्वनाथ वस्तीका पाषाणका चबूतरा और मंडप बनवाया तथा लेख नं० ६६ (४२) कहता है कि इसने अपने गुरु नयचंद्रकी समाधिका स्मारक बनवाया जिनका स्वर्गवास सन ११७६में हुआ था। लेख नं० ३२६ (१२२) कहता है कि इसने करीब १२०० ई० के नागसमुद्र नामका सरोवर बनवाया जिसको अब जिगनकेट्टी कहते हैं । (६) मंगाई वस्ती-या त्रिभुवन चूड़ामणि । इसमें एक कायो। मूर्ति शांतिनाथकी ४॥ फुट ऊंची है। तथा एक मूर्ति श्री वर्द्धमानकी भी है। मंदिरके सामने एक अच्छा खुदा हुआ हाथी है । लेख नं०३३९ (१३२) कहता है कि इसको सन् १३०५ के करीब अभिनव चारुकीर्ति पंडिताचार्यके शिष्य श्रावक वल्लगुलाके मंगई सेठीने बनवाया था-मूलनायक शांतिनाथ नहीं मालूम होते क्योंकि उसपर लेख नं० ३३७ है कि इस मूर्तिको पंडिताचार्यके शिष्य श्रावक भीमादेवीने सन् १४८० में स्थापित किया । यह भीमादेवी देवराज महारानी भार्या थी । यह शायद विजयनगरके राजा देवराज प्रथम है जिन्होंने १४०६ से १४१६ तक राज्य किया।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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