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________________ मदरास व मैसूर मान्त । [ २२९ सन् १९८१ में होयसाल राजा वल्लाल द्वि० के ब्राह्मण मंत्री चंद्रमौलीकी जैन भार्या अचियकेने बनवाया था तथा महाराजने Threat ग्राम इसके लिये भेट किया । इस लेख के ऊपर पल्यंकासन जिन विराजमान हैं । यही लेख श्रीपार्श्वनाथजी के आसनपर नं० ३३१ है व मुडुडी ग्राममें, जो चामरज पाटन में है यही लेख नं. १५० सन् १९८२ है । (देखो एपिग्रेफिका करनाटिका जिल्द ५ ) | (३) सिद्धांत वस्ती - यह इसलिये प्रसिद्ध है कि इस वस्तीके प्राकार के पश्चिममें एक अंधेरा कमरा है वहां किसी समय जैनशास्त्रभंडार विराजमान था | कहते हैं यहीं से प्रसिद्ध महान ग्रंथ धवल, जयधवल, महाघवल मूड़विद्रीमें लाए गए थे। मंदिर में संगमकी मूर्ति श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकरकी ३ फुट ऊंची विराजमान है। मध्य में श्रीपार्श्वनाथ कायोत्सर्ग है और तीर्थंकर पल्यंकासन हैं। यहां मारवाड़ी लेख नं ० ३३२ सन् १७०० करीबका है कि इस मूर्तिको उत्तर भारतके यात्रियोंने स्थापित किया ! सं० नोट- मालम होता है कि यहां मात्र शास्त्र ही रहते थे । जब शास्त्र भंडार न रहा तब खाली मंदिर में यात्रियोंने प्रतिमा स्थापित की । (४) दानशा लेवस्ती - यह अनवस्तीके पास है। इसमें पंचपरमेष्टीकी मूर्ति ३ फुट ऊंची है । चिदानंद कविकृत मुनिवंशाम्युदय (सन् १६८०) में लेख है कि श्री दोद्ददेवराजा ओडयर मैसूर महाराज (सन् १६९९ - १६७२ ) राजा ओडयरने बेलगोला के दर्शन किये थे देखा और इसके लिये मदनेयग्राम महाराजसे भेट दिलाया । के समय में श्री चिक्कदेव तब इस मंदिर को भी
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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