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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [ २२७ नं० २८२ (११०) सन् १२०० का है जो कहता है कि हरडेकन्नाने स्तंभके लिये यक्ष बनवाया । चामुण्डरायका लेख भी दक्षिण ओर से प्रारम्भ हुआ होगा क्योंकि वहां दो मूर्तियें बनी हैं एक राजा चामुण्डरायकी और दूसरी उनके गुरु श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती की । गोम्मटसारकी संस्कृत वृत्तिमें लेख है कि श्री नेमिचंद्रने चामुण्डरायके प्रश्नपर गोम्मटसार ग्रन्थ लिखा था । इस खंभेको चौगडखंभार दान बांटनेका स्थान भी कहते हैं । (४) चेनन्नावस्ती - ऊपर के स्तंभ से कुछ दूर पश्चिमको । इसमें पल्यंकासन श्री चंद्रप्रभु २ || फुट ऊंचे विराजमान है । सामने मानस्तंभ है । लेख नं० ३९० सन् १६७३ का है । कि इसको सेठ चेनन्नाने बनवाया था । बरामदे में दो खंभे हैं। उनपर एक पुरुष और स्त्रीकी मूर्तियां हाथ जोड़े अंकित हैं । ये शायद इसी सेठ और उसकी सेठानी की हों । (२) औदगलवस्ती या त्रिकूटवस्ती - इसमें तीन कोठरियां है । सामने श्री आदिनाथ वाएं श्री नेमिनाथ । दाहने श्री शांतिनाथ पल्यंकासुन विराजमान हैं। इस मंदिर के पश्चिम एक चट्टानपर ३० लेख माड़वाड़ी नागरी लिपिमें हैं जो उत्तर भारतसे आए हुए यात्रियोंके सन् १८४१ तकके हैं । (६) चौवीस तीर्थकर वस्ती - यह नीचेको है । एक पाषाण २ ॥ फुट ऊंचा है मध्य में तीन कायोत्सर्ग मूर्तियें हैं। चारों तरफ २१ मूर्तियें पल्यंकासन हैं । इसमें मारवाड़ी लेख नं० ३१३ (११०) सन् १६४८ है कि चारुकीर्ति पंडित धर्मचन्द्र व अन्योंने स्थापित की। (७) ब्रह्मदेव मन्दिर - बिलकुल नीचे क्षेत्रपाल । इसके पीछे
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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