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________________ २२६ ] प्राचीन जैन स्मारक | 1 (२) अखंड वागिल्लू - यह ऊपर गोम्मटस्वामीके मंदिरमें जानेका द्वार है । यह एक ही पाषाणका बना है इसको भी चामुंsit बनवाया था | इस द्वारके दोनों तरफ दो छोटे मंदिर हैं । दाहनी तरफ श्री बाहुबलिनीकी व बाईं तरफ श्री भरतनीकी मूर्ति कायोत्सर्ग है । यहां लेख नं० २६१ और २६६ कहते हैं कि इन मंदिरोंको सन् १९३० के करीब श्री गंधविमुक्त सिद्धांतदेवके शिष्य श्रावक सेनापति भरतेश्वरने बनवाया था । लेख नं ० २६७ (११५) करीब सन् १९६० का है । उसमें यह भी कथन है और इसके आगे जो सीढ़ियां अखंड वागिल्लूको आनेको बनी हैं उनको भी इसी भरतेश्वरने बनवाया था । इस द्वारके दाहनी ओर एक बड़ी चट्टान है जिसको सिद्धेर गुंड कहते हैं । इसपर बहुत से शिलालेख हैं । सबसे ऊपर पल्यंकासन कई जिनमूर्तियां अंकित हैं । कुछ नाम भी लिखे हैं । दूसरे द्वारकी दाहनी तरफ जिस द्वारको गुलकाय जी वागिलू कहते हैं, एक चट्टानपर एक स्त्रीका चित्र १ फुट ऊंचा अंकित है इसको भूलसे लोग चामुंडरायकी माता गुलकायनीकी मूर्ति कहते हैं- इस मूर्तिके पास लेख नं० ४७७ है । सन् १३०० के करीबका है जिससे विदित है कि यह मलिसेठीकी पुत्री है उसके समाधिमरणका यह स्मारक है । (३) त्यागड ब्रह्मदेव स्तम्भ - इसमें बहुत सुन्दर कारीगरी हैं । इसके नीचे से रुमाल निकल जाता है। इसको प्रसिद्ध चामुं - डरायने बनवाया था | इसके नीचे उत्तरकी ओर लेख नं० २८१ (१०९) है जिसमें चामुण्डरायकी वीरता के कामों का वर्णन है । यह लेख कुछ टूट गया है । दक्षिण तरफ नीचेको लेख
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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