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________________ २१२ ] प्राचीन जैन स्मारक । मूर्ति ५ फुट ऊंची है । गाड़ीके समान रचनाका मेरु पर्वत है इसमें सब तरफ ५२ जिनप्रतिमा खुदी हुई हैं । इसपर एक लेख नं० १३७ ता० १११७ का है । इसमें लिखा है कि महाराज विष्णुवर्द्धन के दरबारी व्यापारी पोयसाल सेठीकी माता माचीकबेने और नेमी सेठीकी माता शांतिकब्बेने इस मंदिर को और मेरुपर्वतको बनवाया । (१३) शांतीश्वर वस्ती - १६ से ३० फुट है । शांतिनाथ - स्वामीकी मूर्ति है । पीछेकी भीतके मध्य भागमें एक आला है इसमें कायोत्सर्ग जैन मूर्ति है । (१४) कूगे ब्रह्मदेव स्तम्भ - यह कोटके दक्षिण द्वारपर है । ऊपर ब्रह्मदेव पूर्वमुख विराजित हैं- इस खंभेके आसन के आठ तरफ आठ हाथी एक दफे थांमे हुए थे । अब कुछ हाथी रह गए हैं । इस खम्भे के चारों तरफ प्राचीन लेख अंकित हैं । नं० १९ 1 (३८) | इस लेख में गंगराजा भारसिंह द्वि०के मरणका स्मारक है जो सन् ९७४ में हुई थी । खम्भेका समय इससे पुराना नहीं मालूम होता है । (१५) महानवमी मंडप-कट्टले वस्तीके दक्षिण दो सुन्दर चार खंभेवाले मंडप पास पास पूर्वमुख हैं । हरएकके मध्य में लेख सहित खंभे हैं। उत्तर मंडपका स्तम्भ बहुत सुन्दर खुदा हुआ है । इस स्तंभ का लेख नं ० ६६ (४२) जैनाचार्य श्रीनयकीर्तिका स्मारक है जो सन् १९७६ में स्वर्गवास हुए उनके शिप्य राजमंत्री नागदेवने पाषाण स्थापित किया । इस पर्वत पर ऐसे कई मंडप हैं जिनमें खुदे हुए स्तंभ हैं ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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