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________________ २००] प्राचीन जैन स्मारक । श्री अर्हनंदी मुनि थे, उनके शिष्य श्रीनरेन्द्रकीर्ति त्रैवेधदेव थे जो न्याय, व्याकरण और जैनसिद्धांतके कमल वन थे। इनके साथी ३६ गुणधारी श्री मुनिचन्द्र भट्टारक थे उनके शिष्य कौशिक मुनि कुलमें देवराजा थे। इनकी भार्या कमिकव्वे थी। पुत्र उदयदित्य था, उसकी भार्या किरुगनामी थी। इसके तीन पुत्र थे-देवराज, सोमनाथ और श्रीधर; इनमें कदुचरितेका स्वामी देवरान मुख्य था। भार्या कमलदेवी थी। इस देवराजको उसकी बुद्धिसे प्रसन्न होकर महारानने ग्राम सूरनहल्ली दिया तब देव राजाने वहां श्री पार्श्वदेवका मंदिर बनवाया। महाराज इस बातपर प्रसन्न हुए और सूरनहल्लीका नाम पाश्चपुर रक्खा। (४५) नं० ८५ ता० ७७६ ई० ग्राम देवरहल्लीमें पटेल कृष्णय्याके पास एक ताम्रपत्रपर। गंगवंशमें श्रीमत् कोंगणीवर्मा धर्म महाराज थे उनके पुत्र दत्तक सूत्र कर्ता माधव महाराज थे। उनका पुत्र हरिवा-पुत्र विष्णुगोप-पुत्र माधव-पुत्र अविनीत पुत्र किरातार्जुनीयके १५ सर्गके वृत्तिकार राजा दुर्विनीत । यह स्वामी पूज्यपाद आचार्यका शिष्य था । इसका पुत्र मुकर, पुत्र श्रीविक्रम, पुत्र भूविक्रम, छोटाभाई नवकाम कोंगनी महाराज या शिवमार । इसका पोता श्री पुरुष मान्यपुरमें रहता था तब मूलसंघ नंदीसंघ एरगिट्टरगण पुलिकल गच्छमें श्री चंद्रनंदि गुरुके शिष्य कुमारनंदी मुनिपति, इनके शिप्य कीर्तिनंद्याचार्य, इनके बड़े शिप्य विमलचंद्राचार्य थे। इनके शिष्य श्रावक दुडू या निर्गुडू युवराज थे। इनके पुत्र परमगुल या पृथ्वीनिर्गुड राजा थे। इनकी भार्या श्री पल्लवाधिराजकी कन्या कन्दाच्छी थी। इस स्त्रीने
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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