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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [१९३ (३०) नं० २७-ऊपरके स्थानपर श्री आदीश्वर वस्तीके द्वारपर । यह लेख नं० २३ के समान है। (३१) नं० २८-करीब ११०० ई० ? वहीं श्री नेमीश्वर वस्तीके द्वारपर देशीगण पुस्तकगच्छक आचार्य श्रीधरदेव थे, उनके शिष्य एलाचार्य थे इनके शिष्य दामनन्दी भ० थे उनके सहवर्ती चंद्रकीर्ति भट्टारक थे उनके शिप्य दिवाकरनंदी सिद्धांतदेव थे, उनके शिष्य चन्द्रायणदेव या जयकीर्तिदेव थे। यह समूह सब वसतियोंका स्वामी है । चंगल्वोंने इनके लिये भूमि दान की। (३२) नं० ३६ ता० १८७८ ई० ग्राम सालिग्राम । अनंतनाथमीके जेन वस्तीके सामनेके स्तंभपर । पेनुगोंडाके सेनगणके श्री लक्ष्मीसेन भट्टारकके शिष्य इदगुरके विदप्पा पल्टनी सेठीके पुत्र अन्नइया व इनके पुत्र वीरप्पा राज्यमहलके मोतीके व्यापारी और टिम्मप्पा इसके छोटे भाईने इस सालिग्राममें इस अनंतनाथस्वामीके नवीन चैत्यालयको बनवाया। ता० हेग्गड़देवकोटे-(३३) नं. १ ता० १४२४ ई. सरगुरु ग्राममें, ग्रामके दक्षिण पंचवस्ती जैन मंदिरमें पाषाणपर श्री अहंत परमेश्वरका महामंडलेश्वर राना बुक्कराय जेन थे। इसका महामंत्री वइचय दंडनाथ अरन्दले गणके स्वामी मुनि पंडितदेवका शिष्य था व बरगीनाद, मसनहल्लीका राजा था । तब कम्पन गोपुंडने श्री बेलगोलाके गोम्मटस्वामीके लिये वरगीनाटके भीतर तोतहल्ली ग्राम भेटमें दिया। उसका नाम गुम्मटपुर रक्खा । (३४) तालुका हन्सूर-नं० १४ ता; १३०३ ई० । ग्राम होमेनहल्ली जैनवसतीके द्वारके बाएं एक पाषाणपर मूल संघ, कुंद.
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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