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________________ arrrrrrramnnar v १९२] भाचीन जैन स्मारक । करनंदि सिद्धांतदेवके ज्येष्ठ गुरु दामनंदी मट्टारक थे उनके एक सम्बन्धी पनसोगेके चंगलतीर्थोकी कुल वसदी, व तोरनादमें अव्वेवसदी व बलिवनेकी वस्तीके स्वामी हैं। (२८) नं० २४ ता० १०९९ ई० इसी वस्तीमें भीतरी द्वारके दक्षिण । कुन्द० पुस्तकगच्छी श्री पूर्णचंद्र मुनिप थे उनके पुत्र दामनंदी मुनीन्द्र थे उनके शिष्य श्रीधराचार्य थे उनके शिष्य मलधारीदेव थे उनके पुत्र चंद्रकीर्ति व्रती थे। तब श्री मूलसंघके दिवाकरनंदी सिद्धांतदेवकी शिष्या वसववे गणती ( आर्यिका )ने जिनालयको दान किया। (२९) नं० २६ ता० ११०० ई० चिकहान्सोगेमें श्रीशांतीश्वर जैन वस्तीके द्वारपर मूलसंघी देशीगण होट्टगे गच्छका समूह, रामस्वामी द्वारा दिये हुए इस परमेश्वरके दान में स्वामी हैं। अनेकोपवासी, चन्द्रायण व्रतधारी जयकीर्ति मुनि पुस्तकान्वयके सूर्य प्रसिद्ध थे। यहां जो देशीगणकी जैन वस्ती ६४ हैं इनको इक्ष्वाकवंशी राजा दशरथके पुत्र, लक्ष्मणके ज्येष्ठ भ्राता, सीताके पति श्रीरामने स्थापित की थीं। इस बंद तीर्थकी बसतियोंके लिये जिनको श्रीरामने बनवाया था व जिनको गंगराजाओंने दान किया था। यादवोंके (या चंगलवोंके) राजेन्द्र चोल नन्नि चंगलदेवने नया दान किया । होट्टगे गच्छकी वसती व तलकावेरीकी वसतियोंके लिये यही संघस्वामी है। सं० नोट-यह स्थान बहुत प्राचीन मालूम होता है व यह लेख भी बहुत आवश्यक है। सन् ११०० में यह बात मान्य थी कि इन जैन मंदिरोंको श्रीरामचन्द्रने बनवाया था। यह स्थान दर्शनीय व पूजनीय है।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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