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________________ १८४] प्राचीन जैन स्मारक । / फिर गौतम गणधरको नमनकर द्रामिल संघमें नंदिसंघके अरुन्गल अन्वयमें श्रीसमन्तभद्र आचार्यकी प्रशंसा की है जिन्होंने वारानसी (बनारस )के राजाको विजय किया। फिर कुमारसेन व चिंतामणि काव्यके कर्ता चिंतामणि, फिर चूड़ामणि काव्यके कर्ता चूड़ामणि मुनिको, फिर महेश्वरमुनि, शांतदेवमुनि, बौद्धविजयी अकलंकदेव, पुप्पसेनमुनि तथा परवादीको जीतनेवाले विमलचंद्रमुनि, फिर प्रतिष्ठा कल्प व ज्वालिनीकल्पके कर्ता इन्द्रनंदि मुनि फिर कृष्णाराजाके समयमें उपदेशदाता परवादिमल्लदेवको नमन किया है। दूसरी तरफ श्रीमहावीरस्वामी, गौतमगणधर व द्रमिल संघका नाम है ( बाकी लेख रहा नहीं )। तीसरी तरफ, श्री मुनि चंद्रप्रभकी प्रशंसा करके यह कहा है कि उन्होंने भादों सुदी १ ० मंगलवार उत्तराषाढ़ नक्षत्र शाका ११०५ में समाधिमरण किया । (२७) ता. नन्जनगड-नं० ५९ ग्राम हरतलेके पश्चिम तुरुके गौडके खेतमें पाषाण । कालेनाटके परतले ग्रामके निवासी प्रियपरमादी गौड़के पुत्र परमादी गौड़ स्वर्ग सिधारे । उसकी माता अय्यब्वेने स्मारक स्थापित किया। (मिति नहीं) (२८) ता. वही-ग्राम हुसुकुरु मल्लिकार्जुन मंदिरमें पाषाणपर नं० ७५ सन् ८७० ई० । शाका ७९२ में जब सत्त्य० कोंगुनीवर्मा धर्म महाराजाधिराज, कोवलाल और नंदगिरिका राजा प्रसिद्ध रानमल्ल परमानन्दी राज्य करते थे तब कोंगालनाद और प्रन्नादका गवर्नर युवराज बूतरसने शत्रुसे युद्ध किया था। (२९) ता. वही-ग्राम कारेया जिरीगंद बागकी झाड़ीके पारख । नं० १९३ सन् १९२४-जब सम्यक्त चूडामणि समाधि
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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