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________________ १७०] प्राचीन जैन स्मारक । (६) नं० २७ ता० ९७९ ई०, ग्राम विदोरे एक सरोवर पर पाषाणमें लेख-श्री त्रिलोकचंद्र भट्टारकके शिष्य श्री रविचन्द्र भट्टारकने समाधिमरण किया। देशीगणके धर्मकीर्ति भ० ने स्मारक स्थापित कराया। (७) तालुका तिपटूर नं० १०१ ता० १०७८ ई० हत्तन कबनहल्ली ग्राममें चंद्रसालेकी जेन वस्तीमें एक पाषाणपर लेख । भाव है-चालुक्य भूलोकमल्ल सोमेश्वरदेवके राज्यमें होयसाल वंशी वीर वल्लालदेव राज्य करते थे। इनके नीचे महासामंत गणदरादित्य और उसकी भार्या नायकित्तीके पुत्र सामंत सुव्वया, सातप्पा, नावप्पा और महासामंत, माचप्पा । ये सब होसालदेवकी चाकरीमें थे। होसाल देवरानकी स्त्री मोकलदेवीने एक जिनालय बनवाया जहां सामंत वल्लीदेव शासन-प्रबंध करते थे। सामंत वल्लीदेवका ज्येष्ठ पुत्र माणिक्य, जाचीसेठी, उसका भाई सहीसेठी दानी थे। माचीसेठी न्याय व व्याकरणका विद्वान था। माचीसेठीका भाई कालीसेठी भी दानी था। इन सबोंने नरवर मिनालयको भूमि दान की-- मूलसंघी कुन्द देशीगण पुस्तक गच्छके आचार्य बागचन्द्र चन्द्रायनदेवके शिष्य रुणिकच्छ गोविंददेव व उसकी स्त्री वोपव्वेको । ८) ता० चिकनयकनहल्ली-नं० २१ ता० ११६० ई०, ग्राम हेग्गरेमें एक वस्तीके पाषाणपर। इसमें पहले श्रीवर्द्धमानस्वामीके शासनमें प्रसिद्ध श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकी प्रशंसा की है कि वे चार अंगुल भूमिसे ऊपर चलते थे। श्लोक है स्वस्तिश्रीवर्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । श्रीकुंदकुंदनामाभृत् चतुरंगुलचारणे ॥
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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