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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त | (२६) धर्म भूषण - राजा देवरायके गुरु (२७) विद्यानंदि - देवराज और कृष्णराय राजाके सामने वाद किया और बिलंगी और कारकलमें जैनधर्मकी रक्षा की। (२८) सिंहकीर्ति - इन्होंने मुहम्मदशाह के दर्बारमें वाद किया [ १६३ १४०१ - १४५१ १४५१-१९०८ १४६३-१४८२ (२९) सुदर्शन (३१) देवेन्द्रकीर्ति (३३) विशालकीर्ति - इन्होंने सिकंदर और वीरुपक्षरायके सामने वाद किया १४६५ - १४७९ (३४) नेमिचंद्र - इन्होंने कृष्णराय और अच्युतराय राजाके सामने वाद किया । १९०८ - १९४२ | इनके पीछे के सब गुरु देवेन्द्रतीर्थ भट्टारक कहलाते हैं:- जैनियोंमें दिगम्बर व श्वेताम्बर दो भेद हैं उनमें दिगम्बर मूल हैं व बहुत प्राचीन हैं । (३०) मेरुनंदि (३२) अमरकीर्ति The first Digambar is original and most ancient. श्वेताम्बरों के माने हुए अंग वल्लभीपुर में ५ वीं शताब्दीमें देवर्द्धिगण द्वारा संकलित किये गए थे ! राजा अशोक के शिलालेखों में व प्राचीन बौद्ध साहित्य में इनको निर्ग्रन्थ नामसे लिखा है । ब्राह्मण लोग जैनियों को स्याद्वादी कहते हैं । श्रीपार्श्वनाथ व महावीरस्वामी ऐतिहासिक पुरुष हैं । पुरातत्व और शिल्प - एपिग्रेफिका करनाटिका जिल्द १२ में करीब ७००० शिलालेखोंकी नकलें की गई हैं । मलकलमोर तालुका में अशोकका शिलालेख है | श्रवणबेलगोला में महाराज चंद्रगुप्त और श्रीभद्रबाहु जैन श्रुतकेवलीके शिलालेख मिले हैं ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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