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________________ १६२ ] प्राचीन जैन स्मारक | प्रायः बंद है । इसी मठके सम्बंधी श्री अकलंकस्वामीने सन् ७८८ में कांचीमें राजा हिमशीतलको सभामें बौद्धोंसे बाद किया था । (३) हूमस मठ - इस मटको श्री जिनदत्तरायने आठवीं शताब्दी के अनुमान स्थापित किया था । इस मठके गुरु श्रीकुंदकुंदान्वय नंदि संघके हैं । श्रीजयकीर्तिदेव से सरस्वती गच्छ प्रारम्भ होता है । इस मठ सम्बन्धी नीचे लिखे प्राचीन गुरु प्रसिद्ध हुए हैं(१) श्रीसमन्तभद्राचार्य - देवागम स्तोत्र के कर्ता । (२) पूज्यपाद - जैनेन्द्रव्याकरण, पाणिनी व्याकरणपर न्याय अर्थात् शब्दावतार तथा वैद्यशास्त्रोंके कर्ता (२) सिद्धांत कीर्ति - गुरु राजा जिनदत्तरायके सन् ७३० के अनुमान (४) विद्यानंदि -आप्तपरीक्षा व श्लोकवार्तिक के कर्ता । . (५) माणिक्यनंदि (६) प्रमाचंद्र - न्याय कुमुचंद्रोदय व शाकटायनपर न्यासके कर्ता ( 9 ) वईमान मुनीन्द्र सन् ९८० १०४० (८) वासपूज्य व्रती - छालराय होसालके गुरु १०४० - ११०० (९) श्रीपाल मुनि (१०) श्रीनेमिचन्द्र मुनि (११) श्री अभयचंद्र राजा चरमकेशवाचार्य के गुरु | (१२) जपकीर्तिदेव (१३) जिनचंद्राध्ये (१४) इन्द्रनंदि (१५) वसन्तकोर्ति (१६) विमालकीर्ति (१५) शुभकीर्तिदेव (१८) पद्मनंदिदेव (१९) माघनंदिदेव (२०) सिंहनंदिदेव (२२) वासुनन्दी (२३) मेवचंद्र (२१) पद्मनभ (२४) वीरनन्दी (२५) धनंजय -
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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