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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [१५५ पीछेके चालुक्य राजा-मैसूरका शेष भाग उत्तर और पश्चिमका पश्चिमी चालुक्योंके आधीन था। इनमें सबसे प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य हुआ है जिसकी माता गंगवंशकी थी। इसने सन् १०७६से ११२६ तक राज्य किया। इनके राज्यको साधारणतः कुन्तलदेश कहते हैं जिस देशका मुख्य प्रान्त वनवासी नाद या शिमोगा मिला था। इस कुंतलदेशकी राज्यधानी बल्लिगेरी ( अब बेलगामी ता० शिकारपुर ) पर थी । इस जगहँ बहुत ही सुन्दर मंदिर जैन, बौद्ध, विष्णु, शिव तथा ब्रह्माजीके हैं। यहां पांच मठ थे व पांच मुख्य आचार्य रहते थे जहां आगन्तुकोंको भोजन व औषधि वितरण किया जाता था । चालुक्योंका एक राजा जयसिंह भोजराजाके दर्बार अनहिलवाड़ा (गुजरान ) में भाग गया । यह भोज सौरवंशी राजाओंका अंतिम राजा था। यहां जयसिंहके पुत्र मूलराजने भोजराजाकी कन्या विवाह ली और सन् ९३१ में गद्दीपर बेठगया। इसने ५८ वर्ष तक व इसके वंशजोंने ११४५ तक राज्य किया । चालुक्योंका बल सन् ११८२ तक ही रहा । बम्बई गजटियर जिल्द १ मन् १८९६में जो गुजरातका इतिहास दिया है उसमें मूलराजका राज्य सन् ९६६ से ९९६ तक दिया हुआ है । यह जैनधर्मका भक्त था । इसने अनहिलवाड़ामें जैनमंदिर बनवाया था जिसको मूलवस्तिका कहते हैं। कलचूरी वंश-चालुक्योंको सन् ११५५ में बज्जाल राना कलचूरीने दबा दिया। यह बन्जाल चालुक्योंका मंत्री और सेनापति था। वज्जाल जैनधर्मी था। इसको विजालंक काल कहते थे। इसके समयमें वासवने लिंगायत मत स्थापित किया। इस मतके मानने
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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