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________________ १४६ ] प्राचीन जैन स्मारक । महावली - वंशका सबमें प्राचीन लेख सन् ३३९का मुदियनूर ( ता० मुलवगल ) में मिला है । गंगवंश - गंगवंशकी उत्पत्तिके लिये देखो शिलालेख ग्यारहवीं शताब्दीके जो पुरले, हूमश तथा कल्लरगुड्डुमें मिले हैं । इनसे प्रगट है कि इक्ष्वाकु या सूर्यवंश में महाराजा धनञ्जय थे, उनकी स्त्री गंधारदेवी थी । इनके पुत्र राजा हरिश्चन्द्र अयोध्यामें हुए । इनकी भार्या रोहिणीदेवी थी । इनके पुत्र राजा भरत हुए। स्त्री विजयमहादेवी थी । गर्भके समय में इसने गंगा नदीमें स्नान 1 किया था, उसी समय इसके पुत्रका जन्म हुआ तब उस पुत्रका नाम गंगदत्त प्रसिद्ध हुआ । इसके वंशवाले गंगवंशी कहलाने लगे । इसी वंश में महाराना विष्णुगोप हुए हैं जिन्होंने अहिछत्रपुर (युक्तप्रांत के बरेली के पास) में राज्य किया । उनकी भार्या पृथ्वीनती थी । इसके दो पुत्र थे- भागदत्त और श्रीदत्त | भागदत्तको कलिंगदेशका राज्य दिया गया। इसके वंशज कलिंगगंग कहलाने लगे । श्रीदत्त प्राचीन स्थान में राज्य करते रहे । इसके वंश में राजा प्रिय बंधुवर्मा हुआ । फिर कुछ काल पीछे राजा कम्प हुए । इनके पुत्र राजा पद्मनाभ थे । इनके दो पुत्र थे जिनका नाम राम और लक्ष्मण रक्खा गया था । पद्मनाभ के साथ उज्जैन के राजा महीपालका झगड़ा होगया तब यह पद्मनाभ अपने दोनों पुत्र और एक छोटी पुत्रीके साथ दक्षिणको प्रस्थान कर गए । अपने दोनों पुत्रों का नाम ददिग और माधव बदल दिया । दक्षिण में पेखर स्थान (जिला कुड़ापा, अब भी इसको गंगरूर कहते हैं ) पर जब ये पहुंचे तब वहां
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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