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________________ १४२ ] प्राचीन जैन स्मारक । १९४४ में इसपर हमला किया । सन् १९६५ में यह मदुराके नायक राजाओंके आधीन होगया । १८ वी शताब्दीके आदि भागमें मेरतंड वर्माने इसे ले लिया । येही वर्तमान राजाओंके बड़े हैं । पुरातत्त्व - यहां प्राचीन मंदिर हैं । (१) अलवये - कोचीन शोवनूर नदीपर ता० अलेनगांड | यहां शंकराचार्य का जन्म हुआ था । (२) कोल्लालूर - त्रिवन्द्रमसे दक्षिण २१ मील । कोल्छालूरके पूर्व ३ मील चारलमलई नामकी पहाड़ी है । इसपर भगवती कोविल नामका प्राचीन चट्टान में ख़ुदा मंदिर है। इसके मध्य कमरे में एक नग्न जैन तीर्थंकर की मूर्ति बैठे आसन छात्र सहित है । दूसरी मूर्ति दक्षिणके कमरेमें है । मंदिर के उत्तर चट्टान के मुखपर ३२ जैन तीर्थकरों की मूर्तियां अंकित हैं । तीन शिलालेख हैं । (२५) कोचीन राज्य । यहां १३६१॥ वर्गमील स्थान है । चौहद्दी है - उत्तरमें मलावार, पूर्व में मलावार और ट्रावनकोर, दक्षिण में ट्रावनकोर, पश्चिममें मलावार और अरब समुद्र । इसके दो भाग हैं। छोटे भागको कोयम्बटूरके मलावार लोग चित्तूर कहते हैं । इतिहास - यहां नौमी शताब्दी में केरलका राज्य था । पुरातत्त्व - यहां इतिहासके पूर्व के समाधि स्थान मिलते हैं, पहाड़ में खुदी गुफाएं हैं जिनमें मुख्य तिरुविलवमदे और तिरुकर पर हैं।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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