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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त। [१४१ (६७) नं. ६७४ सन् २० वहीं श्रीचंद्रनाथकी अष्टधातु मूर्ति (६८) ,, ६७६ , २० कारकलमें कारेषस्तीका श्रीगोमटेश्वर सहित दृश्य । (६९) ,, २२३ सन् २० मंगलोरके कादरीके जैन मंदिरकी सन १९२१-२२की रिपोर्ट एपिग्रैफिकामें है कि कारकलके तहसीलदारके पास नीचे लिखे दो ताम्रपत्र हैं--- (१) नं० ४ शाका १४६५ इकरारनामा परस्पर मित्रताका तिरुमलरस चौटरूने कनवासी पांड्यप्परसको दिया । नं. ५ ऐसा ही इकरारनामा चंदलदेवीके पुत्र पांड्यप्परसने तिरु मल दस चौटरू और जैनगुरु ललितकीर्ति भट्टारकको दिया। (२४) ट्रावनकोर राज्य । यह स्थान उत्तरसे दक्षिण १७४ मील लम्बा व ७५ मील चौड़ा है । इसकी चौहद्दी इम भांति है-उत्तरमें कोचीन और 'कोयम्बटर, पूर्वमें पश्चिमीय घाट, दक्षिणमें भारतीय समुद्र, पश्चिममें अरब समुद्र। यह प्रदेश बहुत सुन्दर व उपजाऊ है । इतिहास-यह प्रदेश केरलके प्राचीन राजाओंका एक भाग था। ९वीं शताब्दीके प्रथम अर्द्धभागमें चेरामान पेरूमालने इसे अपने सम्बंधियोंमें बांट दिया । ११ वीं शताब्दीमें चोलोंने व १३ वीं में मदुराके पांड्य राजाओंने राज्य किया। विजयनगरके राजा अच्युतराय और सदाशिवने क्रमसे सन् १५३४ और
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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