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________________ १३४ ] प्राचीन जैन स्मारक | (८) अल्दन गड़ी - ता० मंगलोर - प्राचीन जैन राजा अजलरका कौटुम्बिक स्थान । (९) कांगड़ा मौजेश्वर - ता० कासरगढ़ - मंगलोर से दक्षिण १२ मील | यहां प्राचीन जैन मंदिर है, कासरगढ़से उत्तर १६ मील । (१०) बसरूर - ता० कुन्दापुरसे ४ मील । यहां नगरके कोटकी भीत बहुत बड़ी है तथा मंदिर प्राचीन हैं । यह प्रसिद्ध व्यापारी स्थान है । अरबलोग यहां बहुत व्यापार करते थे । बसरूरकी जैन रानी १४वीं शताब्दी में देवगिरिके यादव राजा शंकर नायकको मान देती थी । डारटे बारवोसा Duarte Barbosa साहब लिखते हैं कि सन् १९१४में यहां मलाबार, ऊर्मन, अदन, बजहरसे बहुत जहाज आते थे । जैरसप्पाकी जैन रानीने सन् १९७० और १९८० के मध्य में वसरूरनगर वीजापुर राज्यको दे दिया था इसपर विजयनगर के राजा क्रोधित होगए थे । तब उन्होंने स्थानीय जैन शासकोंका विध्वंश किया । (११) बैदूर या बैदूंर-कुन्दापुर से १८ मील । यहां जैन रानी भैरवदेवीका बनवाया हुआ एक किला था । (१३) अलेबूर - भूतल पांड्यके अलिया संतान कानूनमें जिन १६ नगरोंके नाम दिये हुए हैं उनमेंसे यह एक नगर है । (१४) वारांग - हेगड़े वंशके जैन राजाका स्थान । यहां प्राचीन जैन मंदिर है, यहां तीन शिलालेख हैं (१) शाका १४३६ ( सन् १९१४) दान देवराज महाराज द्वारा (२) शाका १४४४ दान भैरव द्वारा (३) शाका १४३७ दान एक गृहस्थ द्वारा । दक्षिण कनड़ाके सब कोर्ट में एक ताम्रपत्र नं ० ८९ है । इसमें कनड़ी लिपिमें
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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