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________________ मदरास व मैसूर पान्त । मदुरा जिला । पांडव-पांडवलोगोंने दक्षिणमथुरा या मदुरामें आकर राज्य किया तथा फिर दीक्षाली और शेव्रुनयसे मोक्ष गए । इसका प्रमाण शक सं० ७०५ में प्रसिद्ध श्रीजिनसेन कृत हरिवंशपुराणमें है। पर्व ५४-सुतास्तुपांडोहरिचन्द्रशासनादकांड एवास निपात निष्ठुरान् । प्रगत्य दाक्षिण्य भृता सुदक्षिणां जनेन काष्ठां मथुरां न्यवेशयत् ॥७४॥ समुद्रवेला सुमनोहग सुते लवंगकृष्णागुरुंगधवायुषु । सुचंदनामोदित दिक्षु दक्षिणा जिहहरुच्चैर्मलयादि सानुषु ॥७५।। भावार्थ-श्रीकृष्णकी आज्ञासे पांडव दक्षिण मथुरामें राज्य करने लगे व मलयपर्वतकी गुफाओंमें विहार किया। पर्व ६३-पुत्रपोषित निजश्रियोऽगमत पल्लवाख्य विषयं जिनं प्रति । ___द्रौपदी प्रभृतयस्तदंगनाः संयमं प्रतिनिविष्टबुद्धयः ॥७॥ भावार्थ-पांडव पुत्र व स्त्रीसहित पल्लवदेशमें श्रीनेमिनाथ भसवानले समवशरणमें गए वहां उनकी द्रोपदी आदि स्त्रियोंने संयम धारण किया। पर्व ६४- इत्थं ते पांडवाः श्रुत्वा धर्म पूर्वभवांस्तया । । ____ संवेगिनो जिनस्यांते संयमं प्रतिपेदिर ॥ १४३ ॥ भावार्थ-श्रीनेमिनाथ तीर्थकरके निकट इस तरह धर्मका स्वरूप व अपने पूर्वभवोंको सुनकर पांडव वैराग्यवान होगए और उनहींके चरणकमलमें मुनिदीक्षा धारण की । पर्व ६५-ज्ञात्वा भगवतः सिद्धि पंचपांडव साधवः । सत्रुजय गिरौ धीराः प्रतिमायोगनं स्थिताः ॥ १८ ॥ भावार्थ-श्रीमेमिनाथनीको सिद्धि प्राप्त हुई ऐसा जानकर पांजों पांडव साधु परमधीर श्रीक्षेत्रुञ्जय पर्वतपर ध्यान लगाकर तिर्छ। (१) मुड़की-मंगलोरसे उत्तर १६ मील या एक जैन मंदिर है।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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