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________________ मदरास व मैसूर मान्त। [२१९ इतिहास-ट्रावनकोरके समान इतिहास है। बहुत प्राचीन कालमें यहांसे मेडिटरेनियनके निकटके नगरोंसे व्यापार होता था। परदेशी लोग मदुराके दरबारसे व्यापार करते थे। यहां चीरावंश राज्य करता था। इसका अंतिम राजा चीरामान पेरुमन सन् ८२५में मक्का गया था। यहां सन् १४९८ में वैस्को डगामा आया था। यहां इतहाससे पूर्वके dollanets समाधिस्थान हैं। यहांके कुछ स्थान ।। (१) पालघाट-नेसीन मिशनके पास एक छोटा जैन मंदिर है जो कि सुन्दर है। पालघाटमें अब १५ जैनी हैं व इतने ही यहांसे ६ मील मुन्दरमें हैं। यह मंदिर २०० वर्षका है। इसीके पास पहले एक प्राचीन मंदिर था जिसके पाषाण दिखाई पड़ते हैं । यहां जैन लोग मोतियोंके लिये मुत्तपत्तनम् व जवाहरातके लिये मछलपहनम्में वसते हैं जहां वर्तमान में मंदिर हैं। (२) तिरुनेल्ली-ता. वाइनाद-यहां गुफाका मंदिर है जो अब शिवका है। पहले बौद्ध या जैनका था । यह मंदिर गन्नीकुतीर्तम्के पास है। मदरासके एपिग्राफी दफ्तरमें नीचे प्रमाण चित्रादि हैं* नं० सी ६-सुलतानकी वैटरीबाई नादमें एक जैन मूर्तिके खंडित भाग। (२) नं० सी ७-वहीं पग व हाथ रहित एक जैन मूर्ति । (३) नं० सी /- वहीं एक जैन मूर्ति ।। (४) नं० सी९-पालघाटमें जैन मंदिरका दक्षिणपूर्वीय भाग (५) नं० सी १०-पालघाटके मंदिरमें जैन मूर्तियां ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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