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________________ ११४] प्राचीन जैन स्मारक। (२) नं० मी० २२ तिरुपरनकुंदरम्के जैन मंदिरका (३) नं० पी० २३ नोट-इम देखने गए थे, यह मदुराके पास है। इस मंदिरका पता नहीं लगा। (४) नं० सी० २४-अनमलईके विष्णु मंदिरके दक्षिण जैन मंदि रका नकशा। (५) नं० सो० २५-नरसिंह मंदिर के दक्षिण जैन मूर्तियोंका चित्र। १२०) टिन्नेवली जिला। या ५३८९ वर्गमील स्थान है। चौहद्दीमें इसके पूर्व और दक्षिण पश्चिम घाट और समुद्र है। उत्तरमें मदुरा है। इनिबार इसका इतिहास मदुराके समान है । यहां प्राचीन द्राविद लोग ते थे। यहां इतिहास के पूर्व के समाधियान दक्षिण भारतमें भाको बया हैं जो वासकर श्री बैकुंटमले ३ मील र - टनेवली गजेटियर सन् १९१७ पृ. १००में है कि अब छ । जन है न बौद्ध हैं। सातवीं शताब्दीके प्रारम्भसे शि: उल्लत हुई तर जैन और बौद्धका प्रभाव घटने लगा। तारा पुराणम्में कई कथाएं हैं जिनमें वर्णन है कि शिवम का विध्वंश किया । शिवमत के साधु अध्पर तिरुज्ञान सम्..... होंड नयनार प्रभित हो गए हैं। मनियोंके विट तमें यहां बहुनसे जिलोंमें एक उत्सव किया जाता है निकोलाजल करते हैं। यहां जैनियों को समगाल कहते
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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