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________________ मदरास व मैसूर मान्त | [ ७५ बिलकुल ऊपर १ || फुट लम्बे चरणचिह्न हैं । कुछ और चरणचिह्न हैं। यहां बहुतसे लेख है जिनकी नकल South Indian Inscriptions Vol. I में मुद्रित है जिनका भाव नीचे दिया जाता है । यहां यह प्रसिद्ध है कि जो १२००० मुनिसंघ श्री भद्रबाहु श्रुतकेवलीके साथ दक्षिण आया था उनमेंसे ८००० मुनियोंने यहां विश्राम किया था | शिलालेखोंका भाव | ( नं ० ६६) - तिरुमलाई पर्वत के नीचे गोपुर के सामने एक गड़ी हुई चट्टानपर १०वीं शताब्दी के राजा राजदेवके २१ वें वर्ष के राज्य में गुणवीर मामुनिबनने जो बैगई ग्रामका स्वामी था एक पानी रोकने की आड़ बनवाई जिसको विद्वान जैन आचार्य गुणिशेषर मरु पोरचुरियमके नामसे प्रसिद्ध किया । वैई या वैगपुर वह गांव है जो इस पर्वतके नीचे बसता है । नं० ६७ - गोपुर के ऊपर चट्टान पर - कोपर केशरवर्मन या उदय्यर राजेन्द्र चोलदेव के १२ वर्षके राज्य में पेरुम्वानय्यदी अर्थात् करट्टवऊ - मल्लियुर के निवासी व्यापारी नन्न पयनकी स्त्री चामुंडप्पईने श्री कुंदवजिनालयको दान किया। यह जिन मंदिर पर्वतके ऊपर है । इसको महाराज राजराजकी कन्या, महाराज राजेन्द्र चोलकी छोटी बहन या पूर्वीय चालक्य विमलादित्यकी स्त्री कुंदवईने बन वाया था । नं० ६८ - गोपुर और चित्रित गुफा के मध्य सीढ़ियोंके नीचे चट्टान पर - कोपरकेशरी वर्मनके १२वें वर्ष के राज्यमें पल्लव राजाकी स्त्री सिन्नवईने मंदिर के देवके लिये दीपक जलानेको दान किया । मुझे
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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