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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त । [६९. रके मूल अभीतक दिखलाई पड़ते हैं। उनकी भीतें गिराकर तिरुवत्तरके मंदिर बनाए गए हैं। दो बड़ी जैन मूर्तियें भूमिमें पड़ी हुई हैं । उनहीके निकट सुंदर एक सरोवर है। कहते हैं यहां जैन मंदिरोंका खजाना भूमिमें गड़ा हुआ है। यहां पुनिदगईके खेतमें जो जैन मूर्ति है उसका फोटो मदरास एपिग्राफी दफ्तरमें है । (३) पंच पांडव मलई-अर्काटसे दक्षिण पश्चिम ४ मील एक छोटी पहाड़ी है । विशेष देखने योग्य पर्वतपर पूर्वीय ओर सात गुफाए हैं जिनको येजहबासलपदी कहते हैं। यहां २ फुट वर्गके ६ स्तम्भ द्वारपर हैं जिससे सात भाग हो गए हैं । भीतरका कुल कमरा ५० फुट लम्बा, ९ फुट ऊंचा व १६ फुट गहरा है। हरएक द्वारके सामने भीतमें चबूतरा है । शायद पहले इनपर मूर्तियें हों। इसीके ऊपर कुछ दूर जाकर चट्टानके मुखपर एक जैन तीर्थङ्करकी मूर्ति दि० जैन पल्यंकाशन १ हाथ उंची अंकित है । हम स्वयं यहां सी० एस० मल्लिनाथनी मदरासके साथ ता. २२ मार्च १९२६को आए थे । अर्काट नगरसे घोड़ा गाड़ी पर्वत तक आती है । पर्वतके दक्षिण ओर एक गुफा ३ फुट ऊंची है। आगे पानीका सरोवर है। इसीके पास चट्टानमें ५ यक्षकी मूर्तियां अंकित हैं जिनको लोग पांच पांडव कहते हैं । कुछ ऊपर आकर गुफाकी चट्टानके मुखपर एक दि० जैन मूर्ति पल्यंकाशन छत्र चमरेन्द्र सहित १ हाथ ऊँची बहुत मनोज्ञ अंकित है। नीचे दो शिलालेख हैं उनके नीचे एक कायोत्सर्ग मूर्ति ॥ हाथ ऊँची है उसके नीचे एक पशुका चिह्न है, शायद गैंडा मालम होता है। इसीके पास दूसरी गुफा है जिसके भीतर मुसलमानोंने कब
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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