SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को साधना में अनुभूति के साथ विपुल साहित्य का सृजन किया है। जिसका उल्लेख हम यथास्पान करते गये हैं। "एक हि सदविप्राः बहुधा वदन्ति' के अनुसार एक ही परम सत्य को विविध प्रकार से अनुभव में लाते हैं और उसे अभिव्यक्त करते हैं। उनकी रहस्यानुभूतियों को धरातल पवित्र प्रास्मसाधना से मण्डित रहता है । यही साधक तत्वदी पौर कवि बनकर साहित्य जगत् में उतरता है। उसका काध्य भावसौन्दर्य से निखरकर स्वाभाविक भाषा में निसृत होता है फिर भी पूर्ण अभिव्यक्ति में असमर्थ होकर वह प्रतीकात्मक इंग से भी अपनी रहस्यभावना को व्यक्त करने का प्रयत्न करता है। उसकी अभिव्यक्ति के साधन स्वरूप भाव और भाषा में श्रद्धा, प्रेम भक्ति, उपलम्भ, पश्चात्ताप, दास्यभाव प्रादि जैसे भाव समाहित होते हैं। साधक की दृष्टि सत्संगति मोर सदगुरु महिमा की ओर आकृष्ट होकर आत्म साधना के मार्ग से परमात्मपद की प्राप्ति की ओर मुड़ जाती है। रहस्यभावना की साधना में साधक पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रात्मशक्ति का दवसापूर्वक उपयोग करता है। तदर्थ उसे किसी बाह्य शक्ति की भी प्रारम्भिक अवस्था में आवश्यकता होती है जिसे वह अपने प्रेरक तत्व के रूप मे स्थिर रखता है। साधना में स्थिरता और प्रकर्षता लाने के लिए साधक भक्ति-ज्ञान और कर्म के समन्वित रूप का प्राश्रय लेकर साध्य को प्राप्त करने का लक्ष्य बनाता है । भक्तिपरक साधना मे श्रद्धा और विश्वास, ज्ञानपरक साधना में तर्क-वितर्क की प्रतिष्ठा और कर्म परक साधना मे यथाविधि प्राचार-परिपालन होता है। जैन साधनात्मक रहस्यवादी साधक भक्ति, ज्ञान और कर्म को समान रूप से अंगीकार करता है । दार्शनिक परिभाषा में इसे क्रमशः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का परिपालन कहा जा सकता है । साधनावस्था में इन तीनों का सम्यक मिलन निर्वाण की प्राप्ति के लिए अपेक्षित है। साधक और कवि की रहस्यभावना में किचित् अन्तर है। साधक रहस्य का स्वयं साक्षात्कार करता है पर कवि उसकी भावात्मक भावना करता है। यह प्रावश्यक नहीं कि योगी कवि नही हो सकता अथवा कवि योगी नहीं हो सकता। काव्य का तो सम्बन्ध भाव से विशेषतः होता है और साधक की रहस्यानुभूति भी वहीं से जुड़ी हुई होती है। अतः इतिहास के पन्ने इस बात के साक्षी हैं कि उक्त दोनों व्यक्तित्व समरस होकर प्राध्यात्मिक साधना करते रहे हैं । यही कारण है कि योगी कवि हुमा है और कवि योगी हुआ है । दोनों ने रहस्यभावना को भावात्मक अनुभूति को अपना स्वर दिया है । प्रस्तुत प्रबन्ध में हमने उक्त दोनों व्यक्तित्वों की प्रतिभा, प्रमुभूति और सजगता को परखने का प्रयत्न किया है। इसलिए रहस्यवाद के स्थान पर हमने
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy