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________________ हमने अब तक मानवीय चेतना की एक सनातन विशेषता के रूप में पाया है। एक अन्य स्थान पर उन्होंने रहस्यवाद की संक्षिप्त परिभाषा देते हुए उसे भगवत सता के साथ एकता स्थापित करने की कला कहा है, जिसने किसी सीमा तक इस एकता को प्राप्त कर लिया है अथवा जो उसमें विश्वास रखता है और जिसने इस एकता की सिद्धि को अपना चरम लक्ष्य बना लिया है।" यहां व्यक्ति एवं भगवत् सत्ता, दोनों के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है तथा दोनों में एकता-स्थापन की सम्भाबना भी की गई है। प्रस्तु, अण्डर हिल वेदान्त में विशिष्टाद्वैत की भांति ईश्वर एवं जीव की एकता को स्वीकार करती प्रतीत होती हैं । Frank Gaynor ने उसे और भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने कहा है-'रहस्यवाद दर्शन, सिद्धान्त, ज्ञान या विश्वास है जो भौतिक जगत् की अपेक्षा प्रात्मा की शक्ति पर अधिक केन्द्रित रहता है । विश्वजनीन प्रात्मा के साथ प्रारिमक संयोग अथवा बौद्धिक एकत्व रहस्यवाद का लक्ष्य है। पात्मिक सत्य का सहज ज्ञान और भावात्मक बुद्धि तथा अात्मिक चिन्तन अनुशासन के विविध रूपों के माध्यम से उपस्थित होता है । रहस्य. वाद अपने सरलतम और अत्यन्त वास्तविक अर्थ में एक प्रकार का धर्म है जो कि ईश्वर के साथ सम्बन्ध के सजगबोध (awareness) और ईश्वरीय उपस्थिति की सीधी और घनिष्ठ चेतना पर बल देता है । यह धर्म की अपनी तीव्रतम, गहनतम और सबसे अधिक सजीव अवस्था है । सपूर्ण रहस्यवाद का मौलिक विचार है कि जीवन मौर जगत् का तत्व वह आत्मिक सार है, जिसके अन्तर्गत सब कुछ है और जो प्राणिमात्र के अन्तर में स्थित यह वास्तविक सत्य है जो उसके बाह्य प्राकार प्रथवा क्रिया कलापों से सम्बन्धित नहीं है। w. E. Hocking ने रहस्यवाद की अन्य परिभाषाओं का खण्डन करते हुए उसे धार्मिक अथवा प्राध्यात्मिक क्षेत्र से सम्बद्ध किया है। उन्होंने कहा है कि रहस्ववाद ईश्वर के साथ व्यवहार करने का एक मार्ग है। इसे हम भावार्थ में एक साधना विशेष कह सकते हैं। 2. Mysticism is seen to be a highly specialized form of that search for reality for heightened and completed life, which we have faund to be a, constant characteristic of human consciousness. Mysticism in Newyark. 1155,P.93 (Practical Mysticism by Vader hill. Practical Mysticism by Under Hill, P. 3, भक्ति काव्य में रहस्यबाद, से उद्धृत, पृ. 13. Mysticism Dictionaries by Frank Gaynor; भक्तिकाव्य में रहस्यबाद, पृ. 13 से उद्घट Mysticism is a way of dealing with God. New Haven, 1912, P. 3557 रहस्यवाद-परसुराम से उद्धृत, पृ. 20. 4.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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