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________________ उपर्युक्त गीत अथवा पद में से कतिपय पदों की सरसता उल्लेखनीय है । अधिकांश पदों में प्रावश्यक सभी तत्व निहित हैं। संगीतात्मकता की दृष्टि से मैया भगवतीदास का निम्न पद कितना मधुर है ! इसमें शरीर को परदेशी के रूप में दर्शाकर यथार्थता का चित्रल बड़ी कुशलता से किया है कहा परदेशी को पतियारो । मनमाने तब चले पंथ को, साँझ गिर्न न सकारी। सबै कुटुम्ब छोड़ इतही पुनि, त्याग चले तन प्यारो॥ दूर दिशावर चलत पाप ही, कोउ न रोकन हारौ। कोक प्रीति करो किन कोटिक, अन्त होयगा न्यारो॥ धन सौं राषि धरम सो भूलत, झूलत मोह मंझारी । इहि विधि काल अनन्त गमायो, पायों नहिं भव पारो ॥ सांचे सुखसो विमुख होत हो, भ्रम मदिरा मतवारो। चेतह चेत सुनहु रे भइया, पाप ही प्राप संभारी॥ इसी प्रकार प्रात्माभिव्यक्ति का तत्व कवि दौलतराम के निम्न पद में अभिव्यजित है मेरो मन ऐसी खेलत होरी। मन मिरदंगसाज करि त्यारी, तन को तमूरा बनोरी। सुमति सुरंग सारंगी बजाई, ताल दोउ करजोरी। राग पांचों पद कोरी मेरो मन समकिति रूप नीर भर भारी, करुना केशर घोरी । ज्ञानमई लेकर पिचकारी, दोउ कर माहिं सम्होरी । इन्द्री पांचौ सखि बोरी । मेरो मन।।2।। कविवर बनारसीदास के इस पद में भाव और अभिव्यंजना का कितना समन्वय है चेतन तू ति काल अकेला । नदी नाब संजोग मिले ज्यौं, त्यों कुटुम्ब का मेला ॥चेतन।। यह संसार अपार रूप सब, ज्यों पट पेखन खेला। सुख सम्पत्ति शरीर जल बुदबुद, विनशत नाही बेला चेतन।। मोह मगन भति मगन भूलत, परी तोहि गलजेला। मैं मैं करत चहूं गति डोलत, बोलत जैसे खेला चितन।। कहत बनारसि मिथ्यामत तजि, होय समुरु का चेला । तास वचन परतीत मानयि, होइ राहज सुरझला विना ।
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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