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________________ 4. गीतिकाव्य, और 5. प्रीतिमा को प्रात्यारित गुर्वावली । श्री arred नाहटा ने भाषा काव्यों का परिचय प्रस्तुत करने के प्रसंग में उनकी विविध संज्ञाओं की एक सूची प्रस्तुत की है' - 1. रास, 2. संधि, 3. चौपाई 4. फागु, 5. धमाल, 6, विवाहलों, 7. 8. मंगल, 9. वैलि, 10. सलोक, 11. संवाद, 12. वाद, 13. झगड़ी, 14 मातृका, 15. वावनी, 16. कुक्क, 17. बारहमासा, 18. चौमासा, 19. पवाड़ा, 20. चचेरी (चाचार), 21. जन्माभिषेक, 22. कलश, 23. तीर्थमाला. 24. चैत्यपरिपार्टी. 25. संघवन, 26. ढाल, 27. ढालिया, 28. चौढालिया, 29. छढालिया 30. प्रबन्ध, 31. चरित, 32. सम्बन्ध, 33. आख्यान. 34. कथा, 35. सतक, 36. बहोत्तरी, 37. छत्तीसी, 38. ससरी, 39. बलासी, 40. इक्कीसो, 41 इकतीसो, 42. चौबीसी, 43. बीमी, 44: भ्रष्टक, 45. स्तुति, 46. स्तवन, 47. स्तोत्र. 48. गीते, 49. समभाव, 50: चैत्यवंदन, 51. देवबंदन, 52 वीनती, 53 नमस्कार, 51. प्रभाती, 55. मंगल, 56. सांझ, 57. बघावा, 58. महूली, 59 हीयाली, 60. गूढा, 61. गजल, 62. लावणी, 63. छंद, 64. नीसाथी, 65. नवरसी, 66. प्रवहरण, 67. पारण, 68. बाण, 69. पट्टावली, 70. गुणवली, 71. हमचड़ी, 72. ह्रौंच, 73. मालामालिका, 74 नाममाना, 75. रागमाला, 76. कुलक, 77. पूजा, 78. गीता, 79. पट्टाभिषेक, 80. निर्वाण, 81. संयमत्री विवाह वर्णन, 82. भास, 83. पद, 84. मंजरी, 85. रसावलो, 86. रसायन, 87. रसलहरी, 88. चंद्रावला, 69. दीपक, 90. प्रदीपिका, 91. फुलडा, 92. जोड़, 93. परिक्रम, 94. कल्पलता 95. लेख, 96. विरुद्ध, 97. मूकड़ी, 98. सत, 99. प्रकाश, 100. होरी 101 तक 102 तर निस्की, 193. चौक, 104. हुंडी, 1905 इण 106, faxım, 107. m, 108, at 109. gawin, 110, grofert, 111. रसोई, 112. का 113. भूखसत 114. जकड़ी, 115. दोहा, 116. कुंडलियर. 115. छप्पयादि । मध्यकालीन जैन काव्य की इन प्रवृत्तियों को समीक्षात्मक दृष्टिकोण देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी प्रवृत्तियाँ मूलत: श्राध्यात्मिक उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत हुई है। जहाँ माध्यात्मिक उद्देश्य प्रभाव हो जाता है, वहां स्वभावतः कवि की लेखनी आलंकारिक न होकर स्वाभाविक और सात्विक ही जाती है। कामूक रहस्यात्मक मोर भक्ति करता रहा है। 1, दिन की स्व-परम्परा-धरचंद नाह, भारतीय मंदिर शोध प्रतिष्ठान बीकानेर, 1962 1
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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