SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 411 - संस्कृत काव्य परम्परा से प्रभाषित होने के कारण . भवालों में इन्द संस्कृत की, भवभूति कहा है । कवि की विशिष्ट रचनाएं तान है। (1) तिसाद मह्मपरिस गुणालेकार (महापुराण), (2) रणायकुमार चरित, और (3) असहर चरित । महापुराण में 63 शलाका महापुरुषों का चरित्र चित्रण है। स्वयंभू नै विमलर की परम्परा का पोषण किया तो पुष्पदंत ने गुणभद्र के उत्तरपुराण की परम्परा की अनुसरण किया। वर्णन के संदर्भ में उन पर त्रिविक्रम भद्र का प्रभाव परिलक्षित होता है । णायकुमार चरित में श्रुतपंचमी के माहात्म्य को स्पष्ट करते हो मगध राजकुमार नागकुमार की कथा निबद्ध है। तृतीय पंथ जसहर चरित प्रसिद्ध यशोधर कथा का पाल्पान करता है । वाणिक और मात्रिक दोनों तरह के छ को प्रयोग हुन्मा है । भाषा के विकास की दृष्टि से अधोलिखित कडवक देखिए। जलु गलइ, झल झलइ । दरि भरइ, सार सरह। तडयडई, तडि पडइ, गिरि फुडइ, सिहि गइइ ॥ मरु बलइ, तरु धुलइ । जलु थलुवि गोउलु वि। गिरु रसिउ, भय तसिउ । थर हरइ, किर भरइ ।। (महापुराण) इसके बाद मुनि कनकामर (112 : सं.) का करकंडु चरि ज, यदि (सं. 1150) का सुदंसण चरिउ, धक्कड़वंशीय धनपाल की भक्सियत्त कहा, पाहिल का पउमसिरि चरिउ, हरिभद्र सूरि का मिणाह चरिउ, यशः कीति का चन्दप्पाह चरित मादि जैसे कथा और चरित काव्यों में हिन्दी के विकास का इतिहास विपा हुआ है। इन कथा चरित काव्यों में जैनाचार्यों ने व्यक्ति के सहज विकास को प्रस्तुत किया है और काल्पनिकता से दूर हटकर प्रगतिवादी तथा मानवतावादी दृष्टिकोए अपनाया है। प्रध्यात्मवादी कवियों में दसवीं शताब्दी के देवसेन और जोइन्दु तथा रामसिद्ध का नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। देवमेन का सावय धम्म दोहा श्रावों के लिये नीतिपरक उपदेश प्रस्तुत करता है । जोइन्दु के परमात्मप्रकाश और योगसार में सरल भाषा में संसारी मात्मा को परमात्मपद प्राप्ति का मार्ग बताया स्या है। रामसिंह ने पाहुड़ दोहा में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के व्यावहारिक स्वरूप को प्रतिपादित किया है । इन तीनों प्राचार्यों के ग्रन्थों की भाषा हिन्दी के मादिकाल की पोर झुकती हुई दिखायी देती है। हेमचन्द (1088-11728) सकाते-पाते यह प्रवृत्ति पौर अधिक परिलक्षित होने लगती है--- ... भल्ला हुमा जो मारिमा, बहिणि म्हारा कंतु । ____ लज्जेज्जन्तु वयंसियत, जइ भग्म पर एंतु ॥ हिन्दी के मादिकाल को अधिकांश रूम में जैन कवियों ने समुद्र किया है। इनमें मुजराती और राजस्थानी कत्रियों का विशेष योगदान रहा है। पारिवाल के एम
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy