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________________ युग (109-1400 ई.) और (ii) प्राचार्य सुम (मध्ययुग (1400-1900 ई.)। सात्वत, सम्प्रदाय (पांचरात्र) की, उदयभूमि मथुरा रही है। शुंग और गुप्त राजामों ने इसे अधिक प्रश्रय दिया है। पलवार युग में भक्ति का रूप और गाढ़ हो गया। यह दक्षिण में अधिक प्रचलित रहा । तृतीय युग राम और कृष्णा माखा में विमाजित हो जाता है। उत्तर भारत में इसका काफी विकास हुया है। निगुण सम्प्रदाय इसी पांदोलन से संबद्ध है। वैष्णव सम्प्रदाय के साथ ही शैव सम्प्रदाय का भी विकास हुमा । इस शैब सम्प्रदाय के दो भेद मिलते हैं-पाशुपत और प्रागमिक । पाशुपत के अन्तर्गत शुद्ध.पाशुपत, लकुलीश पाशुपत, कापालिक और नाथ माते है। मायमिक सम्प्रदाय में संस्कृत मंक तमिल शंव, काश्मीर शैव और बीर घाव को अन्तर्भूत किया गया है । पाशुपत सम्प्रदाय का विशेष जोर उत्तर भारत में रहा है । इसके प्रसिद्ध प्राचार्य नैयायिक उद्योतकर के के प्रशस्तपाद मादि अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं । लकुलीश सम्प्रदाय गुजरात और राजस्थान में अधिक था । लकुलीश की वहाँ मूर्तियाँ भी मिली हैं । कापालिक सम्प्रदाय भी उत्तर भारत में मिलता रहा । पर उसका कोई महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध नहीं हुमा । उसकी साधना पद्धति बड़ी वीभत्स और प्रश्लील थी। उसमें नरबली, सुरापान, यौन सम्बन्ध, मांस भक्षण जैसे गहित तत्व अधिक प्रचलित थे। शव सम्प्रदाय के विशिष्ट सिद्धान्त थे :-पशुपति शिव मखिल विश्व के स्वामी हैं । मनुष्य पशु है, पर उसका शरीर जड़ और प्रात्मा चेतन है । यह भात्मा पाश से बन्धा हुमा है। पाश तीन प्रकार के हैं प्रारराव (मज्ञान), (2) कर्म, (3) माया । शिव की कृपा से शक्ति प्रकट होती है और पाशों का विनाश होकर मोक्ष प्राप्त होता है जहाँ शिव और मारमा मदत बन जाते हैं । मध्यकालीन शैवाचार्य संबन्दर पौर अप्पर ने जनधर्म को दक्षिण से समाप्त करने का भारी प्रयत्न गिया । शंव सम्प्रदाय मोर शाक्त सम्प्रदाय का विशेष संबंध रहा है। शक्ति का संबंध. विशेषतः तंत्र-मंत्र से रहा है। शिव की पत्नी दुर्गा, शक्ति की प्रतीक है। उसी. के माध्यम से संसार की सृष्टि मादि कार्य होते हैं । वाम मार्ग की यौगिक सामनायें भी थाक्त सम्प्रदाय से सम्बद्ध हैं। शैव सम्प्रदाय का नाथ सम्प्रदाय उत्तरभारत, पंजाब तथा राजस्थान प्रादि । प्रदेशों में विशेष प्रचलित था। पहले उसका सम्बन्ध कापालिकों से था पर बादमें गोरखनाम. ने उसे मुक्त कराया। इस सम्प्रदाय में हल्योग-साधना विशेष रूप से प्रचलित थी। तान्त्रिक वैदिक और बौक सापक नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित थे। सोम, सिद्ध, कोल प्रादि सम्प्रदाय भी इसी के अंग हैं। समास: मध्यकालीनस . मन इतिहास को वैदिक संस्कृति के सन्दर्भ में देखने से यह स्पष्ट झे,जाता है कि सप्तमसष्टम - सी में चमत्कार का प्रभार
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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