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________________ 194 घट में विराजमान है और वह प्रिय में। दोनों का जल और लहरों के समान अभिन सम्बन्ध है । प्रियकर्ता है और वह करतूति, प्रिय सुख का सागर है और वह सुख सींव है। यदि प्रिय शिव मंदिर है तो वह शिवनींव, प्रिय ब्रह्मा है तो वह सरस्वती, प्रिय माधव है तो वह कमला, प्रिय शंकर है तो वह भवानी, प्रिय जिनेन्द्र हैं तो वह उनकी वाणी है । इस प्रकार जहां प्रिय हैं-वहां वह भी प्रिय के साथ में है । दोनों उसी प्रकार से हैं- 'क्यों शशि हरि में ज्योति प्रभंग ।' जो प्रिय जाति सम सोइ । जातहि जात मिलै सब कोइ ॥ 18 ॥ प्रिय मोरे घट, मैं पियमहि । जलतरंग ज्यों द्विविधा नाहिं ॥19॥ पिय मो करता मैं करतुति । पिय ज्ञानी में ज्ञानविभूति ||201 for सुखसागर में सुखसव । पिय शिवमन्दिर में शिवनींव ॥21॥ for ब्रह्मा मैं सरस्वति नाम । पिय माधव मो कमला नाम ॥22॥ पिय शंकर मैं देवि भवानि । पिय जिनवर में केवलबानि ॥23॥ जहं पिय तह मैं पिय के संग। ज्यों शशि हरि में जोति प्रभंग ||29111 afaar बनारसीदास ने सुमति और चेतन के बीच प्रद्वैत भाव की स्थापना करते हुए रहस्यभावना की साधना की है। चेतन को देखते ही सुमति कह उठती है, चेतन, तुमको निहारते ही मेरे मन से परायेपन की गागर फूट गयी। दुविधा का अचल फट गया और शर्म का भाव दूर हो गया। हे प्रिय, तुम्हारा स्मरण आते ही मैं राजपथ को छोड़कर भयावह जंगल में तुम्हें खोजने निकल पड़ी। वहां हमने तुम्हें देखा कि तुम शरीर की नगरी के अतः भाग में अनन्त शक्ति सम्पन्न होते हुए भी कर्मों के लेप में लिपटे हुये हो । अब तुम्हें मोह निद्रा को भंग कर और रागद्वेष को दूर कर परमार्थ प्राप्त करना चाहिए । फूटि । बालम || || बालम तहुं तन चितवन गागर प्रचरा गो फहराय सम गै छूटि तिक रहूं जे सजनी रजनी घोर । घर करकेउ न जानं चहुदिसि चोर, बालम ||21 पिउ सुधि पावत वन मैं पैसिउ पेलि । छाउ राज डगरिया भयउ अकेलि, बालम ||३|| काय नगरिया भीतर चैतन भूप । करम लेप लिपटा बल ज्योति स्वरूप, बालम |15|| चेतन बूझि विचार घरहु सन्तोष । राग द्वेष दुइ बंधन छूटत मोष, बालम 11131 1 2 1. वही, प्रध्यातम गीत, 18-29, पृ. 161-162. 2. बनारसीविलास, प्रध्यातम पद पंक्ति, 10, पृ. 228 - 29.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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