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________________ 836 उसे पकाने के बाद शुद्ध कर लिया जाता है किसे ही वात्मा का मूल समाव जान पष्ट नहीं हो सकता। उसे भेदविज्ञान के माध्यम से मोहादि के प्रावरण को दूर कर परमात्मपद प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार चेतन और पुद्गल, दोनों पृथक् है । पुद्गल (देह) कर्म की पर्याय है और चेतन शुद्ध बुद्ध रूप है । चेतन मोर पुद्गल के इस अंतर को भैया भगवतीदास ने बड़े साहित्यिक ढंग से स्पष्ट किया है। इन दोनों में वहीं अन्तर है जो शरीर पौर वस्त्र में है। जिस प्रकार शरीर वस्त्र वही हो सकता और न वस्त्र शरीर । लाल वस्त्र पहिनने से शरीर लाल नहीं होता । जिस प्रकार वस्त्र जीर्ण-शीर्ण होने से शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं होता 'उसी तरह शरीर के जीर्ण-शीर्ण होने से प्रात्मा जीणे-शीर्ण नहीं होता । सरीर पुद्गल की पर्याय है और उसमें चिदानन्द रूप मात्मा का निवास रहता है। इसी को कविवर बनारसीदास ने अनेक उदाहरण देकर समझाया है। सोने की म्यान में रखी हुई लोहे की तलवार सोने की कही जाती है परन्तु जब वह लोहे की तलवार सोने की म्यान से अलग की जाती है तब भी लोग उसे लोहे की ही कहते हैं । इसी प्रकार घी के संयोग से मिट्टी के घड़े को घी का पड़ा कहा जाता है परन्तु वह घड़ा घी रूप नहीं होता, उसी तरह शरीर के सम्बन्ध से जीव छोटा, बड़ा. काला, व गोरा पादि अनेक नाम पाता है परन्तु यह शरीर के समान अचेत नहीं हो जाता। खांडो कहिये कनकको, कनक-म्यान-सयोग । म्यारो निरखत म्यानसौं, लोह कहैं सब लोग ॥7॥ ज्यों घट कहिये धीव को, घट को रूप न धीव। त्यौं वरनादिक नाम सौं, जड़ता लहै न जीव ॥812 1. लाल वस्त्र पहिरेसों देह तो न लाल होय, लाल देह भये हंस लाल तो न मानिये। वस्त्र के पुराने भये देह न पुरानी होय, देह के पुराने जीव जीरन न जानिये॥ बसन के नाश भगे देह को न नाश होय, देह के न नाश हंस नाश न बधानिये। देह दर्व पुद्गल की चिदानन्द ज्ञानमयी, दोऊ भिन्न-भिन्न रूप 'भैया' उर मानिये ||lon (ब्रह्मविलास, पाश्चर्य चतुर्दशी, 10, पृ. 191.) 2. नाटक समयसार, पजीबद्वार, 7-9 पृ. 58-60,
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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