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________________ उपस्थापना man व्यक्ति पोर सृष्टि के सर्जक तत्वों की गवेषणा एक रहस्यवादी तत्व है पौर संभवतः इसीलिये चिन्तकों और शोधकों में यह विषय विवादास्पद बनारहा है अनुभव के माध्यम से किमी सत्य और परम माराध्य को खोजना इसकी मूलप्रकृति रही है। इस मूलप्रवृत्ति की परिपूर्ति मे साधक की जिज्ञासा और तर्कप्रधान बुद्धि विशेष योगदान देती है। यहीं से दर्शन का जन्म होता है। - इसमे साधक स्वय के मूल रूप में केन्द्रित साध्य की प्राप्ति का सुनिश्चित लक्ष्य निर्मित कर लेता है । साध्य की प्राप्ति काल में व्यक्तित्व का निर्माण होता है और इस व्यक्तित्व की सजना में अध्यात्म चेतना का प्रमुख हाथ रहता है ।। मानव स्वभावतया सृष्टि के रहस्य को जानने का तीव्र इच्छुक रहता है। उसके मन में सदैव यह जिज्ञासा बनी रहती हैं कि इस सृस्टि का रचयिता कौन है ? शरीर का निर्माण कैसे होता है ? शरीर के अन्दर वह कौन सी शक्ति है, जिसके अस्तित्व से उसमें स्पंदन होता है और जिसके प्रभाव में उस स्पंदन का लोप हो जाता है ? यदि इस शक्ति को प्रात्मा या ब्रह्म कहा जाय तो वह नित्य है प्रवा अनित्य ? उसके नित्यत्व अथवा पनित्यत्व की स्थिति में कमीका का समाप है और कमों से मुक्ति पाने पर उस शक्ति का क्या स्वरूप एनीवाल के ये प्रास्तविल्ह है और इन प्रश्न चिन्हो कासमाधान जन-सिद्धान्त में माता सुमारे और सरल, रंग से अनेकान्तवाद का प्राश्रय लेकर किया गया है। . .. .. ___ इस रहस्यवाद की र मन्वेषण में हर देश का प्रयल किये गये है पोर उन प्रयत्नों का एक विशेष इतिहास बना हुआ है। हमारी बात बताए पर वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक दार्शनिकों ने न मानों पर तिनमनन किया है और उसनिकर्ष ग्रन्थों के पृष्ठों पर भाकित । उपनिषद काल में इस रहस्यवाद पर से विचार प्रारम्भ हुमा और उसकी परिति तत्कालीन अन्य भारतीय दर्शनों में जागृत हुई। यद्यपि इसका इतिहास मिल MARA
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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