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________________ पल्य बीतनेपर श्रीअरनाथ, हजारकोटि वर्ष वीतनेपर श्रीमल्लिनाथ, ५४ लाखवर्ष बीतनेपर श्रीमुनिसुव्रत, छहलाख वर्ष बीतनेपर श्रीनमिनाथ, पांच लाख वर्ष वीतने पर श्रीनेमिनाथ, पौने चौरासी हजार वर्ष वीतनेपर श्रीपार्श्वनाथ तीर्थकर, और २५० वर्ष बीतने पर श्री वर्द्धमान तीर्थंकर हुए । श्रीशान्तिनाथसे वर्द्धमानतीर्थकर पर्यन्त श्रुतका विच्छेद नहीं हुआ । कुशाग्रबुद्धि यतिवरों द्वारा ज्योंका त्यों प्रकाशित रहा। __ श्रीपार्श्वनाथ भगवानके तीर्थक अन्तमें कुन्दनपुरके राजा सिद्धार्थकी प्रियकारिणी ( त्रिसला) रानीके गर्भसे अन्तिम तीर्थकर श्रीमहावीरका जन्म हुआ। उन्होंने तीस वर्षकी आयुमं कुमारावस्थामें ही जिनदीक्षा लेली और घोर तपस्या करके बारह वर्षमें केवलज्ञान लक्ष्मी प्राप्त करली । उनके केवलज्ञान सूर्यके उदय होनेपर इन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने समवसरण नामक सभाकी रचना की । उस महासभा देव, मनुष्य, मुनि आदि सबका समूह एकत्रित था, तो भी त्रिजगद्गुरु भगवानकी दिव्यध्वनि ६६ दिनतक निःसृत नहीं हुई । यह देखकर इन्द्रने जब विचार किया, तो उसे विदित हुआ कि, गणधरदेवका अभाव ही दिव्यध्वनि न होनेका कारण है। अतएव गणधरकी शोध करनेके लिये वह इंद्र गौतम प्रामको गया । वहां एक ब्राह्मणशालामें इन्द्रभूति नामका पंडित अपने पांचसौ शिष्यों के सन्मुख व्याख्यान दे रहा था । इन्द्रभूति अखिल वेदवेदांगशास्त्रोंका विद्वान था और विद्याके मदमें चूर हो रहा था। १ यह स्थान मगध देशमें पावापुरके समीप अब भी इसी नामसे प्रसिद्ध है। २ इन्द्रभूतिके गोत्रका नाम गौतम था । अनेक इतिहासकारोंने भ्रममें पड़कर गौतम गणधरको गौतम बुद्ध लिख मारा है।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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