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________________ को खोलकर धूप दिखाना चाहिये. यदि वेष्टन जीर्ण बदलकर नये बांधना चाहिये । इसके सिवाय उस शक्ति के अनुसार नवीन ग्रन्थ लिखवाकर अथवा छपे हुए • मंगाकर मंदिरजीको तीथोंको, गृहत्यागियोंको विद्यार्थियोंको तथा असमर्थ श्रावक श्राविकाओंको भेंट करना चाहिये क्योंकि शास्त्रदान के समान संसार में कोई भी दान नहीं है । यह ग्रन्थ श्रीइन्द्रनंदि आचार्यकृत मूलग्रन्थका अनुवाद है । हम चाहते थे कि, इसको विस्तृत ऐतिहासिक टिप्पणियोंसे अलंकृत करके प्रकाशित करें. जिससे हमारा सच्चा इतिहासका सर्व साधारण में प्रचार हो | परन्तु श्रुतपंचमी बहुत समीप आगई हैं. इसकारण अवकाशके और उपयुक्त साधनों के अभाव से हमारी उक्त इच्छा पूर्ण नहीं हुई । यदि समाजने हमारे इस छोटेसे परिश्रमका सत्कार किया और श्रुतपंचमीका पर्व प्रचलित होगया तो बहुत शीघ्र हम विस्तृत रूप से इस ग्रन्थको प्रकाशित करने का उद्यम करेंगे। होगये हों तो दिन अपनी अन्तमें सरस्वतीजनक श्रीजिनेन्द्रदेव से यह प्रार्थना करके हम इस भूमिकाको समाप्त करते हैं कि इसके द्वारा हमारे समाज में जिनवाणी माता की भक्तिका प्रवाह बढ़े और उसमें पड़कर हम लोग भगवान भट्टाकलंक समन्तभद्रादि महात्माओं के स्मारक बनाने तथा उनकी जयन्तियां मनानेके लिये तत्पर हो जावें । समाजमें ऐसी बुद्धि उत्पन्न हो जावे कि, हमारी उन्नति तब ही होगी. जब कि हम जिनवाणी माताकी सच्ची सेवा करेंगे, और अपने ऋषि महर्षियोंके परिश्रमका सत्कार करना सखेिंगे । सरस्वतीसेवक बम्बई. अक्षयतृतीया श्रीवीर नि० संवत् २४३४ } चावली ( आग्रा ) निवासी श्री लालाराम गुप्त ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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