SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुए नामशेष ग्रन्थका किसी प्रकारसे भी जीर्णोद्धार कराया हो। यह कितनी लज्जाकी बात है, कि लाखों प्राचीन ग्रन्थों के स्वामी होकर भी जैनी लोग एक ऐसा सरस्वतीभंडार स्थापित नहीं कर सकते हैं, जिसमें हजार दोहजार ग्रंथोंका संग्रह हो । श्रुतावतारका पाठ करके-श्रुतपंचमीके भूलेहुए पर्वको पुनः प्रचलित करके-हमको आशा है कि जैनियोंमें शास्त्रोंके जीर्णोद्धारकी चर्चा होने लगेगी. और थोडे ही दिनोंमें हमको एक दो बडे २ भारी सरस्वतीभंडारोंको स्थापित देखने का सौभाग्य प्राप्त हो जावेगा। __पूर्वकालमें हमारे यहां सर्वत्र इस पर्वका उत्सव मनाया जाता था. और इसीसे उत्तेजित होकर लोग ग्रन्थों के संग्रह करनेमेंजीर्णोद्धार कराने में लाखों रुपये खर्च करते थे। ईडर, जैसलमेर, कामा, कारंजा, नागौर, सौनागिरजी, आमेर, जयपुर, कोल्हापुर, आदि स्थानों के भंडार; जिनमें दो २ तीन २ हजार ग्रन्थ संग्रहीत हैं इस विषयके प्रत्यक्ष जीवित उदाहरण है । वे लोग धन्य हैं, जिनकी सच्ची उदारतासे सरम्वती माताकी भक्तिसे आज हमको इस बात के कहने का साहस होता है कि, लाखों ग्रन्थों के नष्ट होजानेपर भी जैनियोंमें अभी इतने ग्रन्थ मौजूद हैं कि, दश पांच लाख रुपये लगाने पर भी उनका उद्धार करना कठिन है । ___ हम अपनी जाति के विद्वानोंसे मुखियोंसे प्रार्थना करते हैं कि, वे इस वर्ष प्रयत्न करके प्रत्येक नगर और ग्राममें इस पर्वको प्रचलित करें । श्रुतपंचमी के दिन प्रत्येक मंदिरमें जिनवाणी माताकी विधिपूर्वक पूजा करें, स्तुति करें, अन्यविस्तार करके जुलूस निकालें, और इस श्रुतावतारकी पवित्र कथा को पढ़कर सुनावे । उस दिन प्रत्येक भाई को प्रत्येक मंदिरके तथा अपने गृहके शास्त्रों
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy