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________________ ४० लेना चाहिये कि शूद्र भी उन समस्त गुणोंका पात्र है जो कि, नित्य पूजक स्वरूपमे वर्णन किये गये हैं और वह ११ वीं प्रतिमाको धारण करके ऊंचे दर्जेका श्रावक भी होसकता है, अतः उसके ऊंचे दर्जेके नित्य पूजक हो सकने में कोई बाधक भी प्रतीत नहीं होता । वह पूर्ण रूपसे नित्य पूजनका अधिकारी है । अब जिन लोगोंका ऐसा ख़याल है कि शूद्रोंका उपनीति (यज्ञोपवीत धारण ) संस्कार नहीं होता और इस लिये वे पूजनके अधिकरी नहीं हो सकने; उनको समझना चाहिये कि पूजनके किसी खास भेदको छोड़कर आमतौरपर पूजनके लिये यज्ञोपवीत ( ब्रह्मसूत्र जनेऊ ) का होना ज़रूरी नहीं है । स्वर्गादिकके देव और देवांगनायें प्रायः सभी जिनेद्रदेवका नित्यपूजन करते है और खास तौरसे पूजन करके अधिकारी वर्णन किये गये ह; परन्तु उनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं होता । ऐसी ही अवस्था मनुष्यस्त्रियोंकी है । वे भी जगह जगह शास्त्रोंम पूजनकी अधिकारिणी वर्णन की गई है। स्त्रियोंकी पूजनसम्बधिनी असंख्य कथाओंसे जैन साहित्य भरपूर है। उनका भी यज्ञोपवीत संस्कार नहीं होता | ऊपर उल्लेख की हुई कथाओंम जिन गज- ग्वाल आदिने जिनेन्द्रदेवका पूजन किया है, वे भी यज्ञोपवीत संस्कारसे संस्कृत ( जनेऊ के धारक ) नहीं थे । इससे प्रगट है कि नित्य पूजक के लिये यज्ञोपवीत संस्कारसे संस्कृत होना लाज़मी और ज़रूरी नहीं है और न यज्ञोपवीत पूजनका चिन्ह है। बल्कि वह द्विजोंके व्रतका चिन्ह हैं । जैसा कि आदिपुराण पर्व ३८-३९-४१ मे, भगवजिनसेनाचार्य के निम्नलिखित वाक्योसे प्रगट है: I "व्रतचिह्नं दधत्सूत्रम्.. व्रतसिद्ध्यर्थमेवाऽहमुपनीतोऽस्मि साम्प्रतम्... " १" 6 " व्रतचिह्नं भवेदस्य सूत्रं मंत्रपुरःतरम्....” " व्रतचिह्नं च नः सूत्रं पवित्रं सूत्रदर्शितम् ।” " व्रतचिह्नानि सूत्राणि गुणभूमिविभागतः ।” वर्त्तमान प्रवृत्ति ( रिवाज़ ) की ओर देखनेसे भी यही मालूम होता है कि नित्यपूजनके लिये जनेऊका होना ज़रूरी नहीं समझा जाता । क्योंकि स्थान स्थान पर नित्यपूजन करनेवाले तो बहुत हैं परंतु यज्ञोपवीत संस्कारसे
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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