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________________ पणपणचउतियभेदा सम्मं परिकित्तिदा समए ४७॥ मिथ्यात्वं अविरमणं कषाययोगाश्च आस्रवा भवन्ति । पञ्चपञ्चचतुःत्रिकभेदाः सम्यक् प्रकीर्तिताः समये ॥ ४७ ॥ अर्थ-मिथ्यात्व, अविरति (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह ), कषाय, और योग (मन वचन कायकी प्रवृत्ति )रूप परिणाम आस्रव अर्थात् कर्मोंके आनेके द्वार हैं, और उनके क्रमसे पांच, पांच, चार, और तीन भेद जिनशासनमें भले प्रकार कहे हैं। भावार्थ-आत्माके मिथ्यात्वादिरूप परिणामोंका नाम आस्रव है। एयंतविणयविवरियसंसयमण्णाणमिदि हवे पंच । अविरमणं हिंसादी पंचविहो सो हवइ णियमेण ४८ एकान्तविनयविपरीतसंशयं अज्ञानं इति भवेत् पञ्च । अविरमणं हिंसादि पञ्चविधं तत् भवति नियमेन ॥ ४८ ॥ अर्थ-मिथ्यात्वके एकान्त, विनय, विपरीत, संशय और अज्ञान ये पांच भेद हैं, तथा अविरतिके हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पांच भेद होते हैं । इनसे कम बढ़ नहीं होते हैं। परमात पो । कोहो माणो माया लोहोवि य चउविहं कसायं . खु । मणवचिकायेण पुणो जोगो तिवियप्पमिदि जाणे ॥ ४९ ॥ महानाही कारण बात। क्रोधः मानः माया लोभः अपि च चतुर्विधं कषायं खलु । मनोवचःकायेन पुनः योगः त्रिविकल्प इति जानीहि ॥१९॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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