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________________ हमने टिप्पणीमें उनके क्षेपक होनेका कारण अपनी समझके अनुसार लिख दिया है। दूसरे ग्रन्थकर्ताओंने इस ग्रन्थकी जो गाथाएं उद्धृत की हैं, अथवा दूसरे ग्रन्थों में इसकी जो गाथाएं प्रक्षिप्त होगई हैं, उनका उल्लेख भी कई जगह कर दिया गया है। इस ग्रन्थकी रचनाका और स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाकी रचनाका ढंग प्राय: एक सा जान पड़ता है और इन दोनोंकी कई एक गाथाएं भी ऐसी हैं, जो थोड़े बहुत शब्दोंके फेरफारसे प्रायः एकसी मिलती हैं । इससे लोग शंका कर सकते है कि, यह ग्रन्थ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाकी छाया लेकर बनाया गया होगा। क्योंकि स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाकी भूमिकामें पूज्यवर पं० पन्नालाल जी बाकलीवालने अनुमान किया है कि, खामिकार्तिकेय दो हजार वर्ष पहले होगये हैं । और इससे उनका अस्तित्व कुन्दकुन्दम्वामीसे भी पहले सिद्ध होता है । परन्तु हमारी समझमें उक्त अनुमान ठीक नहीं है । विचार करनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि कुन्दकुन्दम्वामीसे म्वामिकार्तिकेय बहुत ही पीछे हुए है । क्योंकि बम्बईके भंडार में जो एक 'आचार्यों और उनकी कृतिकी सूची' किसी विद्वान्की संग्रहकी हुई है, उसमें खामिकार्तिकेयको सेनसंघका आचार्य लिखा है। और सेनसंघकी पट्टावलीमें कुमारसेन नामके एक आचार्य वि० संवत् ८८८ में हुए भी है, जो श्रीविनयसेन आचार्य के शिष्य थे । खामिकार्तिके यानुप्रेक्षाके अन्तमें ग्रन्थकर्त्ताने अपना नाम 'सामिकुमार' अर्थात् 'स्वामिकुमार' लिखा है, जो कि 'स्वामिकुमारसेन' का संक्षिप्त १-जिणवयणभावण सामिकुमारेण परमसद्धाए । रइया अणुवेक्खाओ चंचलमणरंभणटं च ॥ ४८७ ।।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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