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________________ ४ पट्टपर बैठे थे ऐसा नन्दिसंघकी पट्टावलीमें लिखा हुआ है । इनके वक्रग्रीव, एलाचार्य, गृद्धपिच्छ, पद्मनन्दि ये चार नाम भी प्रसिद्ध हैं । आपके बनाये हुए ग्रन्थोंसे जैनसाहित्य दैदीप्यमान हो रहा है । आध्यात्मिक ग्रन्थोंका रचयिता आपके समान और कोई दूसरा नहीं हुआ है । आपके बनाये हुए सम्पूर्ण ग्रन्थ प्राकृत भाषामें हैं । ऐसे अगाध पांडित्यको पाकर भी आपका प्राकृत जैसी सरल भाषामें अन्थरचना करना यह प्रगट कर रहा है कि, आपको संस्कृतके प्रसिद्ध ग्रन्थकर्त्ता बननेकी अपेक्षा लोगोंको मोक्षमार्ग में लगाना बहुत प्यारा था । पाठक सोच सकते हैं कि, उस समय जब कि सारे देशमें प्राकृत भाषा बोली जाती थी, आपके प्राकृत ग्रन्थोंने कितने जीवोंको उपकार किया होगा - कितने जीव मोक्षमार्ग के सम्मुख किये होंगे । भगवान् कुन्दकुन्दका सामान्य चरित्र भाषाके अनेक ग्रन्थों में लिखा हुआ है और जैनमित्र आदि पत्रों में भी प्रकाशित हो चुका है, इसलिये उसे इस छोटीसी पुस्तककी प्रस्तावना में लिखना उचित न समझके हम इतना ही लिखकर संतोष करते हैं कि लगभग उन्नीस सौ वर्ष पहले जैनसाहित्यके आकाशमें एक ऐसा चन्द्रमा उदित हुआ था जिसकी चन्द्रिकासे सारा दुःखसंतप्त संमार आजतक धवलित और शान्तिसुधासंसिक्त हो रहा है और जिसके लिये कविवर वृन्दावनजीने कहा है 66 "" हुए न हैं न होंहिंगे मुनींद्र कुंदकुंदसे । इस ग्रन्थ में सब मिलाकर ९१ गाथाएं हैं, जिनमें से लगभग १८ गाथाएं क्षेपक मालूम पड़ती हैं । ऐसी गाथाओंके विषयमें
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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