SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनमन्थरत्नाकरे Vilom sha मधुकरसमतां यस्तेन सोमप्रभेण व्यरचि मुनिपनेत्रा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥ ९९ ॥ ५२ कवित्त छन्द । जैन वंश सर हंस दिगम्बरः मुनिपति अजितदेव अति आरज । ताके पद वादीमदभंजन; प्रघंटे विजयसेन आचारज || ताके पट्ट भये सोमप्रभः तिन ये ग्रन्थ कियो हित कारज | जाके पढत सुनत अवधारत. है सुपुरुष जे पुरुष अनारज॥९९॥ इन्द्रवजा सोमप्रभाचार्यमभा व लोके वस्तु प्रकाशं कुरुते यथाशु | तथायमुश्चरूपदेशलेशः शुभोत्सवज्ञानगुणांस्तनोति ॥ १०० ॥ भाषाग्रन्थकर्त्ता की ओरसे नामादि. , दोहा छंद | नाम सूक्तिमुक्तावली: द्वाविंशति अधिकार । ठान लोक परमान सवः इति ग्रन्थविस्तार ॥ १ ॥ sarve वनारसी: मित्र इकचिन । तिनहि अन्य भाषा कियो बहुविध इक्यानवः ऋतु श्रीषम वैशाख । : सोमवार एकादशी: करनछत्र मिन पाय || ३ ॥ कवि || २ ॥ इनि वसीमनाचा रचिता निन्दरप्रकरापरपर्यायानुवरी भाषान्दानुवादसहिता समाप्ता । १ इस लोकका नाया छ मा नहिीं मिला.
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy